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अंतरिम बजट को मोदी सरकार बनाएगी चुनावी हथियार?

वित्त मंत्री अरुण जेटली की ग़ैरमौजूदगी में उनके मंत्रालय का कामकाज देख रहे रेल मंत्री पीयूष गोयल शुक्रवार को संसद में अंतरिम बजट पेश करेंगे। हालाँकि सरकार अंत में इस पर राज़ी हो गई कि यह पूर्ण बजट नहीं, अंतरिम बजट ही होगा, सबकी निगाहें इस पर टिकी होंगी कि क्या नरेंद्र मोदी सरकार इसका इस्तेमाल चुनावी हथियार के रूप में करेगी।  

वोट खींचने का सुनहरा मौक़ा

मौजूदा संसद का कार्यकाल 3 जून, 2019 को ख़त्म हो जाएगा। कुछ हफ़्तों बाद ही आम चुनाव का एलान हो जाएगा और उसके साथ ही आचार संहिता भी लागू हो जाएगी। ऐसे में सरकार को नीतिगत फ़ैसले नहीं करने चाहिए, वह काम अगली सरकार पर छोड़ देना चाहिए। 
चुनाव के पहले लोकलुभावन फ़ैसलों का एलान कर और अलग-अलग समुदायों और वर्गों के लिए आकर्षक योजनाओं की घोषणा कर उन्हें अपनी ओर खींचने का जो सुनहरा मौका मिला है, उसे सरकार गंवाना नहीं चाहेगी।
मनमोहन सिंह सरकार के वित्त मंत्री पी चिदबंरम  ने 2014 के आम चुनावोें के पहले अंतरिम बजट ही रखा था, लेकिन उसमें नीतिगत फ़ेसले शामिल थे। कांग्रेस पार्टी उन फ़ैसलों को लेकर चुनाव में गई भी थी। लिहाज़ा, पहले से ही ग़ैर-पारंपरिक राजीनीति करने वाले नरेंद्र मोदी से यह अपेक्षा करना ज़्यादती होगी कि वे अंतरिम बजट का सियासी फ़ायदा न उठाएँ। 

मनमोहन सरकार ने क्या किया था?

अंतरिम बजट में लिए गए पी चिदंबरम के सबसे अहम फ़ैसलों में प्रमुख था पूर्व सैनिकों के लिए 'एक रैंक एक पेंशन' स्कीम। सरकार ने सिर्फ इस योजना के लिए ही अलग से 500 करोड़ रुपये का आबंटन किया था। इसके तहत रिटायर किए हुए लाखों सैनिकों और उनके परिवार वालों को तो आकर्षित किया ही जा सकता था, सरकार राष्ट्रवादी होने का दावा भी कर सकती थी और बता सकती थी कि वह देश की सुरक्षा में जुटे लोगों के लिए कितनी फ़िक्रमंद है। इसके अलावा चिदंबरम ने 89,588 करोड़ रुपये का आबंटन नए हथियारों और उनके कल पुर्जों की खरीद के लिए किया था। अंतरिम बजट होते हुए भी रक्षा मद में 1,34,410 करोड़ रुपये ख़र्च करने का प्रावधान किया गया था। सरकार ने इसका फ़ायदा उठाने की कोशिश भी की थी। उस समय तक बीजेपी ने नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश कर दिया था। मोदी बिल्कुल नए और आक्रामक तेवर के साथ मैदान में उतर चुके थे और कांग्रेस पर देश की सीमाओं की परवाह नहीं करने और सुरक्षा से समझौता करने के आरोप लगाते हुए ज़ोरदार हमले करने लगे थे। कांग्रेस सरकार ने अंतरिम बजट में सुरक्षा पर अधिक ध्यान देने को चुनावी सभाओ में इस्तेमाल भी किया था। 
अंतरिम बजट में रक्षा पर ज़्यादा खर्च कर मनमोहन सिंह ने नरेंद्र मोदी के हमलों का जवाब देने और उसका काट निकालने की पूरी कोशिश की थी। लेकिन यह बहुत कारगर नहीं हो सकी थी।

मनमोहन सरकार का अंतिरम बजट

चिदंबरम के पिटारे में मध्यवर्ग, किसान, उद्योग जगत, व्यापारियों, सबके लिए कुछ न कुछ था। बहुत ही संक्षेप में कुछ अहम फ़ैसले इस तरह थे। 
  • 1.महिलाओं की सुरक्षा के लिए निर्भया फंड को 1,000 करोड़ रुपये।
  • 2.अप्रैल 2009 से छात्रों के लिए क़र्ज़ पर ब्याज न लेना। इससे 9 लाख युवाओं को फ़ायदा होता।
  • 3.मोबाइल हैंडसेट पर सेंट्रल वैट की दर में कटौती कर उसे 6 प्रतिशत पर लाना। 
  • 4.छोटी गाड़ियों, मोटरसाइकिल और वाणिज्यिक गाड़ियों पर उत्पाद कर 12 प्रतिशत से 8 प्रतिशत
  • 5.एसयूवी पर उत्पाद कर 30 प्रतिशत से 24 प्रतिशत करना।
  • 6.मझोली और बड़ी गाड़ियों पर उत्पाद कर 27-24 प्रतिशत से कम कर 24-20 प्रतिशत करना।
  • 7.उपभोक्ता सामग्रियों पर उत्पाद कर 12 प्रतिशत से 10 प्रतिशत करना।

क्या करेगी मोदी सरकार?

नरेंद्र मोदी सरकार इस अंतरिम बजट का इस्तेमाल कर किसानों, पिछडों, अनूसूचित जाति-जनजाति, युवाओं, महिलाओं को लुभाने की कोशिश करे तो क्या आश्चर्य? उसके फ़ोकस पर मध्य वर्ग भी होगा। उसकी कुछ घोषणाएँ इस तरह हो सकती हैं। 
  • 1.किसानों की क़र्जमाफ़ी योजना का एलान। इस पर आबंटन एक लाख करोड़ रुपये तक का हो सकता है।
  • 2.खाद्य सब्सिडी पर 1.8 खरब रुपये का आबंटन।
  • 3.फ़सल बीमा पर किसानों से प्रीमियम नहीं लेने का एलान।
  • 4.मध्यवर्ग के लिए आयकर में कुछ छूट का एलान। लगभग 25-30 करोड़ करदाता सीधे प्रभावित।
  • 5.पाँच करोड़ रुपये से कम के व्यवसाय करने वालों के क़र्ज में 2 प्रतिशत ब्याज की छूट।
  • 6.स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहले से 5 प्रतिशत ज़्यादा खर्च। कई योजनाओं का एलान।
  • 7.सरकारी बीमा कंपनियों में 40 अरब रुपये के पूंजी निवेश का एलान।
  • 8.स्टार्टअप के निवेश पर कर में छूट। 
  • 9.बिजली से चलने वाली गाड़ियों और बैटरी पर जीएसटी में छूट।
  • 10.दूरसंचार उपकरणों और स्पेक्ट्रम पर जीएसटी में छूट।
  • 11.बेरोज़गारी दूर करने से जुड़े कई अहम फ़ैसले।
  • 12.ढाँचागत सुविधाओं से जुड़ी कई योजनाओं का एलान।
ये योजनाएँ मौजूदा लोकसभा रहते-रहते लागू नहीं की जा सकती हैं, न ही इनके लिए पैसों का इंतजाम इस दौरान हो सकता है। यह सबको पता है। पर इन फ़ैसलों के राजनीतिक मायने हैं, उनके फ़ायदे हैं। पी चिदंबरम के अंतरिम बजट का सियासी फ़ायदा कांग्रेस पार्टी नहीं उठा पाई थी। पीयूष गोयल के अंतरिम बजट का कितना फ़ायदा बीजेपी उठा पाएगी, यह कुछ महीनों में पता चल जाएगा। 
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