loader

क्या एमपी में विधानसभा चुनाव के नतीजों को प्रभावित कर पाएंगे ओवैसी?

मध्यप्रदेश के स्थानीय निकाय चुनावों में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के सात पार्षद चुनाव जीत गए हैं। इसे मध्य प्रदेश की राजनीति में ओवैसी और उनकी पार्टी की धमाकेदार एंट्री माना जा रहा है। राजनीतिक हलकों में अब यह चर्चा शुरू हो गई है कि अगले साल मध्य प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी क्या गुल खिलाएगी?

हालाँकि उन पर कांग्रेस के वोट काट कर बीजेपी को फायदा पहुँचाने का भी आरोप लग रहा है। इससे पहले उन पर ऐसे ही आरोप बिहार, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के चुनाव में लग चुके हैं। हालाँकि बिहार को छोड़कर किसी भी राज्य में ओवैसी की पार्टी एक विधानसभा सीट नहीं जीत पाई। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में उनकी मौजूदगी से बीजेपी को जबरदस्त फायदा हुआ है। यही कहानी मध्यप्रदेश में भी दोहराई जा सकती है। 

ताज़ा ख़बरें

मध्यप्रदेश में क्या मिला ओवैसी को?

ओवैसी की पार्टी के सात पार्षद जीते हैं। तीन खरगौन में, दो जबलपुर में और एक-एक खंडवा और बुरहानपुर में। इसके साथ ही खंडवा और बुरहानपुर में पार्टी के मेयर पद के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे। इन दोनों ही जगहों की जीत में ओवैसी की पार्टी की अहम भूमिका मानी जा रही है। बुरहानपुर में बीजेपी की माधुरी पटेल ने कांग्रेस की शहनाज बानो को 542 वोट से हराया है। माधुरी पटेल को 52,823 वोट मिले हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी शहनाज बानो को 52,281 वोट मिले हैं। यहाँ ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन की मेयर प्रत्याशी शाईस्ता सोहेल हाशमी को 10,322 वोट मिले हैं। ऐसा माना जा रहा है कि ओवैसी की पार्टी की उम्मीदवार की मौजूदगी की वजह से कांग्रेस को नुक़सान हुआ और बीजेपी को फायदा मिला है।

दावा किया जा रहा है कि खंडवा में भी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के मेयर पद के उम्मीदवार ने बीजेपी के उम्मीदवार को जीतने में मदद की है। ओवैसी की पार्टी की उम्मीदवार कनीज़-बी ने 9,601 वोट हासिल किए। छोटे नगर निगम में इतने वोट हासिल करना हार जीत का फ़ैसला करने के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। खंडवा में ओवैसी की पार्टी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़कर एक पर जीत हासिल की। जबलपुर में मुस्लिमीन ने सात सीटों पर चुनाव लड़ा और दो पर जीत हासिल की। वहीं खरगौन में ओवैसी की पार्टी ने बड़ी कामयाबी हासिल कर तीन पार्षद जिताए हैं।

क्या है आगे का रास्ता?

नगर निगम के चुनाव में 7 सीटों पर जीत हासिल करने के बाद असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी के हौसले बुलंद हैं। अब अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर निश्चित तौर पर उनकी नजर होगी। असदुद्दीन ओवैसी चाहेंगे कि विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी का हर हाल में खाता खोले। इससे पहले वह महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के चुनाव में इसी रास्ते पर आगे बढ़ चुके हैं। साल 2014 में हुए महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने 2 सीटें जीती थीं। 2019 के लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की औरंगाबाद सीट उनकी पार्टी ने जीती थी। इसी साल हुए विधानसभा चुनाव में पार्टी पिछले चुनाव में जीती हुई दोनों ही सीटें गंवा दी थी। लेकिन दो नई सीटें जीत ली थीं। 

2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटें जीती थीं। उसके बाद पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी का खाता तक नहीं खुला था।

हाल ही में बिहार के उनके पांचों विधायक आरजेडी में विलय कर चुके हैं। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी को नई रणनीति के साथ उतारेंगे और नया राजनीतिक प्रयोग करेंगे। राज्य में उनके पास खोने के लिए कुछ नहीं है और पाने के लिए पूरी सियासी ज़मीन पड़ी है। 

क्या हैं ओवैसी के लिए संभावनाएँ?

असदुद्दीन ओवैसी किसी राज्य में चुनाव लड़ते हैं तो उनके एजेंडे पर दो मुख्य मुद्दे होते हैं। एक, विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या बढ़ाना और दूसरा सत्ता में उन्हें वाजिब हिस्सेदारी दिलाना। मध्यप्रदेश में दोनों ही मुद्दे असरदार साबित हो सकते हैं। विधानसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी यहां हमेशा से कम रही है। सत्ता में हिस्सेदारी तो लगभग शून्य ही है। मौजूदा विधानसभा में सिर्फ दो मुस्लिम विधायक हैं। दोनों कांग्रेस के हैं। आरिफ अकील भोपाल उत्तर से जीते हैं और आरिफ मसूद भोपाल मध्य से। 2018 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस की तरफ़ से सिर्फ़ 4 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। इनमें से तीन कांग्रेस के और एक बीजेपी के थे। बीजेपी ने आरिफ अकील के खिलाफ भोपाल उत्तर से फातिमा रसूल को चुनाव मैदान में उतारा था। कांग्रेस की मसर्रत शाहिद सिरोंजी विधानसभा सीट से उम्मीदवार थीं। वो बीजेपी उम्मीदवार से हार गईं थीं। असदुद्दीन ओवैसी मध्य प्रदेश विधानसभा में मुसलमानों की नुमाइंदगी बढ़ाने के नाम पर ऐसी सीटों पर जीत की उम्मीद लगा सकते हैं जहां मुसलमान हार जीत को प्रभावित करते हैं।

asaduddin owaisi aimim madhya pradesh local body election result - Satya Hindi

कैसा रहा मुसलमानों का प्रतिनिधित्व?

छत्तीसगढ़ के अलग राज्य बनने से पहले मध्य प्रदेश में विधानसभा की कुल 320 सीटें थीं। राज्य में मुसलमानों की आबादी क़रीब-क़रीब 10% थी। इस हिसाब से देखें तो मध्यप्रदेश में क़रीब 30 मुस्लिम विधायक होने चाहिए। लेकिन मुस्लिम विधायकों की संख्या कभी भी दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पाई। 1962 में सबसे ज़्यादा सात मुस्लिम विधायक बने थे। इसके बाद से लगातार मुसलमानों का राजनीतिक प्रतिनिधित्व घटता चला गया। 1967 में तीन, 1972 में 6, 1977 में 3, 1985 में 5, 1990 में 3 मुस्लिम विधायक चुने गए। 2018 में 33 साल बाद जनसभा में दो मुस्लिम विधायक जीते थे।

मुसलमानों को किसने कितना प्रतिनिधित्व दिया?

असदुद्दीन ओवैसी जिस राज्य में चुनाव लड़ने जाते हैं वो उन राज्यों की क्षेत्रीय पार्टियों या कांग्रेस और बीजेपी पर आरोप लगाते हैं कि उन्होंने मुसलमानों को उचित प्रतिनिधित्व नहीं दिया। मध्यप्रदेश में उनका ये आरोप कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर सही बैठता है। किसी जमाने में कांग्रेस मुसलमानों को 10-12 तक टिकट दिया करती थी। पहले यह संख्या घटकर 5-6 तक आई और पिछले चुनाव में सिर्फ तीन रह गई। 2013 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 5 और बीजेपी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव मैदान में उतारा था जिसमें से एक विधायक जीतने में सफल हुआ।

2008 में कांग्रेस ने 5 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे। बीजेपी ने किसी मुसलमान को उम्मीदवार नहीं बनाया था। इस चुनाव में भी एक मुस्लिम विधायक चुना गया था।

2003 विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने 5 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी ने इस चुनाव में भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था। इस चुनाव में भी एक मुस्लिम विधायक चुना गया था। 1998 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 4 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। बीजेपी ने इस बार भी किसी मुसलमान को टिकट नहीं दिया था। चुनाव में एक निर्दलीय समेत कुल 3 मुसलमान विधायक चुने गए थे। 1993 के विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम जीत कर नहीं आ पाया था, तब कांग्रेस ने छह और बीजेपी ने एक मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट दिया था। 1985 और 1990 में बीजेपी के टिकट पर एक-एक मुस्लिम प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचा था। 1993 में बीजेपी ने अब्दुल गनी अंसारी को टिकट दिया था, लेकिन वे अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। इसके बीस साल बाद पार्टी ने भोपाल उत्तर से पूर्व केंद्रीय मंत्री आरिफ बेग को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा।

आबादी में मुसलमानों की कितनी हिस्सेदारी?

2011 की जनगणना में मध्य प्रदेश की कुल आबादी में 6.57 प्रतिशत मुसलमान हैं। यानी राज्य में करीब 47 लाख 75 हज़ार मुस्लिम मतदाता हैं। आँकड़ों के मुताबिक़ प्रदेश के 52 ज़िलों में से 19 में मुसलमानों की आबादी एक लाख से ज़्यादा है। आबादी के अनुपात के हिसाब से मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले में सबसे ज्यादा 23.86% मुसलमान हैं। दूसरे स्थान पर प्रदेश की राजधानी भोपाल आता है। यहां 22.16% मुसलमान हैं। प्रदेश में सिर्फ ये दो ही जगह हैं जहां मुसलमानों की आबादी 20% से ज्यादा है। शाजापुर में 13.96%, इंदौर में 12.67%, उज्जैन में 11.73%, देवास में 11.14%, शिवहर में 10.52%, रतलाम में 10.38% और विदिशा में 10.25% मुसलमान हैं।

मध्य प्रदेश से और ख़बरें

कितनी सीटों पर मुसलमान असरदार?

मध्य प्रदेश की करीब दो दर्जन सीटों पर मुस्लिमों की अच्छी खासी संख्या है। इसमें से एक दर्जन सीटों पर मुस्लिम वोट निर्णायक भूमिका में हैं। इंदौर-1, इंदौर-3, उज्जैन, जबलपुर, खंडवा, रतलाम, जावरा, ग्वालियर, शाजापुर, मंडला, नीमच, महिदपुर, मंदसौर, इंदौर-5, नसरुल्लागंज, इछावर, आष्टा और उज्जैन दक्षिण सीट जैसी विधानसभा सीटों पर मुसलमानों का अच्छा खासा असर है। जाहिर है असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी की इन्हीं विधानसभा सीटों पर नजर होगी। अगले विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर उनकी पार्टी चुनावी नतीजों में उलटफेर कर सकती है। हो सकता है कि उनकी पार्टी का विधानसभा चुनाव में खाता भी खुल जाए।

क्या हुआ था पिछले विधानसभा चुनाव में?

मध्यप्रदेश में 2018 के पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 114 सीटें हासिल करके सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी। हालांकि सरकार बनाने के लिए जरूरी बहुमत से उसे 2 सीटें कम मिली थीं। इसके बावजूद कुछ निर्दलीय और बीएसपी के समर्थन से सरकार बनाने में कामयाब रही थी। तब कांग्रेस को 56 सीटों का फायदा हुआ था। बीजेपी को इतनी सीटों का नुकसान हुआ था। बीजेपी 109 सीटें जीत पाई थी। इस चुनाव में बीजेपी को कांग्रेस से ज्यादा 41.02% वोट मिले थे। जबकि कांग्रेस को 40.8% वोट मिले थे। कांग्रेस को 4.6% वोटों का फायदा हुआ था और बीजेपी को 3.86% का नुकसान हुआ था। कांग्रेस की सरकार सिर्फ डेढ़ साल चल पाई थी तब कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 22 विधायकों समेत कांग्रेस छोड़ दी थी और बीजेपी की सरकार बनवा दी थी। अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी के सामने अपनी सरकार बचाने और कांग्रेस के सामने बीजेपी का यह मज़बूत किला धराशाई करने की चुनौती है।

ख़ास ख़बरें
मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस की राजनीतिक ताकत लगभग बराबर है। लिहाजा एक दो प्रतिशत वोटों के इधर-उधर होने से सत्ता के समीकरण बदल सकते हैं। विधानसभा चुनावों में असदुद्दीन ओवैसी की मौजूदगी सत्ता के समीकरण बदल सकती है। भले ही उनकी पार्टी इतने वोट हासिल करने की स्थिति में न हो। लेकिन उनकी मौजूदगी ही बीजेपी को फायदा पहुंचाने की गारंटी मानी जाती है। बिहार, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के उदाहरण सामने हैं। लिहाजा वो जरूर विधानसभा चुनाव में पूरी ताकत के साथ अपनी पार्टी को उतारेंगे। उनके चुनाव मैदान में उतरने से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान होगा, यह सोचना उनका काम नहीं है। यह तो उन्हें सोचना है, ओवैसी की वजह से जिनका खेल बिगड़ने की आशंका है।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
यूसुफ़ अंसारी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

मध्य प्रदेश से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें