खुद को आदिवासियों की हितैषी कहने वाली मध्यप्रदेश की शिवराज सिंह सरकार से क्या राज्य के गरीब किसान आदिवासियों का भरोसा डगमगाने लगा है? क्या अब इनकी सुनवाई करना सरकार ने बंद कर दिया है और क्या इनके सामने न्याय पाने का आखिरी रास्ता मौत को गले लगाना ही बचा रह गया है? यदि ऐसा नहीं है तो फिर सिवनी जिले के दो आदिवासियों ने राज्यपाल मंगू भाई पटेल को चिट्ठी लिखकर इच्छा मृत्यु की इजाज़त क्यों मांगी! उनकी यह बेबसी न सिर्फ राज्य सरकार की संवेदनहीनता बल्कि स्थानीय प्रशासन के अमानवीय और भ्रष्ट रवैये को भी उजागर करता है।
एमपी: राज्यपाल से इन आदिवासियों ने इच्छा मृत्यु की इजाजत क्यों मांगी?
- मध्य प्रदेश
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- 29 Mar, 2023

प्रतीकात्मक तसवीर।
मध्य प्रदेश में दो आदिवासी आख़िर ज़मीन अधिग्रहण को लेकर आख़िर इतना परेशान कैसे हो गए कि राज्यपाल से उन्होंने इच्छा मृत्यु की मांग तक कर डाली?
सिवनी जिले के घंसौर तहसील अन्तर्गत ग्राम बिनैकी कला निवासी मनोहर बैगा और लच्छी मरावी सरकारी तंत्र के रवैये से आखिर इतने हताश और निराश क्यों हैं? उत्तर में ये कुछ बोलें या नहीं, पटवारी, तहसीलदार, एसडीएम, कलेक्टर से लेकर कमिश्नर तक वर्षों की इनकी दौड़ और वहाँ से निकले दस्तावेज सारी कहानी खुद कहने लगते हैं। भू-स्वामी के तौर पर एक पावर प्लांट को दी गई जिस जमीन का खेतूलाल बैगा और लच्छी मरावी को 2 करोड़ 66 लाख 67 हजार रुपये मुआवजा मिलना था और जिस रक़म को सरकारी खजाने में जमा भी करा दिया गया, अचानक कलेक्टर ने उसकी अदायगी पर रोक लगा दी। उनके इस अप्रत्याशित आदेश के विरुद्ध किसानों ने न्यायालय कमिश्नर जबलपुर का दरवाजा खटखटाया। वहाँ से निकले आदेश से उनमें थोड़ी उम्मीद भी बंधी। लेकिन उस पर अमल करने की बात तो दूर, जिला कलेक्टर ने कमिश्नर के आदेश के विपरीत मुआवजा के हकदार इन किसानों के सरकारी पट्टे को ही फर्जी ठहराने की कोशिश शुरू कर दी। दोनों आदिवासियों को जालसाज साबित करने के लिए नीचे के राजस्व अधिकारियों ने तहसील कार्यालय से उनके रिकॉर्ड तक गायब कर दिए।