एक बार फिर अदालत ने महाराष्ट्र पुलिस को खरी-खोटी सुनाई है। पिछले दो-तीन सालों से जिस तरह से अदालत महाराष्ट्र पुलिस पर टिप्पणियां कर रही है, वह साधारण नहीं है और सवाल यह उठता है कि क्या पुलिस इतनी लापरवाह हो गयी है या राजनीतिक दबाव उसकी जांच प्रक्रिया को पंगु कर रहा है। डॉ. नरेंद्र दाभोलकर-गोविंद पानसरे की हत्या की जांच का मामला हो, भीमा कोरेगांव और उससे उपजे शब्द अर्बन नक्सल का प्रकरण हो, सनातन संस्था के ख़िलाफ़ चल रही जांच हो या महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक का मामला जिसमें उप मुख्यमंत्री अजीत पवार सहित कई और राजनेता आरोपी हैं, इन सभी मामलों में अदालत ने ना सिर्फ जांच एजेंसियों के कामकाज पर उँगली उठाई है, उन्हें फटकार भी लगाई है कि वे मामलों की जांच क्यों नहीं कर रही हैं?
दाभोलकर-पानसरे की हत्या की जांच के मामले में क्या राजनीतिक दबाव में हैं एजेंसियां?
- महाराष्ट्र
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- 14 Feb, 2020

दाभोलकर-पानसरे की हत्या सहित कई अन्य मामलों में मुंबई हाई कोर्ट ने ना सिर्फ जांच एजेंसियों के कामकाज पर उँगली उठाई है बल्कि फटकार भी लगाई है।
गुरुवार को मुंबई उच्च न्यायालय ने एक बार फिर अंधश्रद्धा निर्मूलन संस्था के संस्थापक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और कामरेड गोविंद पानसरे की हत्या की जांच के मामले में गठित विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच को लेकर तीव्र नाराजगी जताई। अदालत ने कहा कि इन दोनों प्रकरण को क्रमशः सात और पांच साल हो गए हैं लेकिन इन मामलो में मुक़दमे की शुरुआत अब तक नहीं हुई है? कोर्ट ने कहा कि कब तक ऐसा ही चलता रहेगा? आख़िर कब मुक़दमे शुरू होंगे?