महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी के मुद्दे पर चले सियासी घमासान के बाद कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार बनाने वाली शिवसेना का यह फ़ैसला राजनीतिक विश्लेषकों के साथ ही आम लोगों को काफी अख़रा था। कारण साफ था कि शिवसेना और कांग्रेस की विचारधारा कहीं से भी मेल नहीं खाती। दूसरी ओर, कांग्रेस चूँकि राष्ट्रीय पार्टी है, इसलिए एकदम विपरीत विचारधारा वाली शिवसेना के साथ सरकार बनाने का फ़ैसला करना उसके लिए क़तई आसान नहीं था। इसलिए, कांग्रेस ने शिवसेना के साथ जाने से उसे क्या सियासी नफ़ा-नुक़सान हो सकता है, इस पर काफ़ी समय तक विचार भी किया।
सावरकर पर टकराव, कितने दिन चलेगी ठाकरे सरकार?
- महाराष्ट्र
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- 15 Dec, 2019
सावरकर को लेकर हुए टकराव के बाद सवाल यह है कि बेमेल विचारधारा की महाराष्ट्र सरकार कब तक चलेगी?

15 दिन में ही हो गया टकराव
मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष संजय निरूपम सहित कई नेताओं ने पार्टी आलाकमान से कहा कि वह शिवसेना के साथ गठबंधन न करे। शिवसेना की ओर से भरोसा दिलाया गया कि गठबंधन सरकार में हिंदुत्व के मुद्दे को लेकर कोई टकराव नहीं होगा। बात आगे बढ़ी और हिचकोले खाती हुई नाव को आख़िरकार किनारा मिला और यह तय हुआ कि महाराष्ट्र में तीनों दल मिलकर सरकार बनाएंगे। लेकिन 30 नवंबर को सदन में विश्वास मत हासिल करने वाली इस सरकार को अभी 15 दिन भी नहीं हुए थे कि विचारधारा का टकराव खुलकर सामने आ गया और यह टकराव हुआ हिंदू महासभा के नेता वी. डी. सावरकर को लेकर। वही सावरकर जिन्हें लेकर अक्सर कांग्रेस और हिंदुत्व विचारधारा के समर्थकों में भिड़ंत होती रहती है।