वह 1981 की एक सर्द सुबह थी। मैं इंदौर में ‘नई दुनिया’ के संपादकीय विभाग में काम करता था। एक दिन ऑफ़िस पहुँचा तो देखा कि वीआईपी रूम खुला हुआ है। आम तौर पर वह कक्ष तभी खुलता था जब इंदौर में कोई राष्ट्रीय शिखर पुरुष आया करता था। मैंने हमारे साथी सुबोध होल्कर से पूछा, ‘कौन है? सुबोध ने बताया, धर्मवीर भारती आए हैं। धर्मयुग वाले। रज्जू बाबू से मिलने आए हैं। रज्जू बाबू घर से आने वाले हैं। उनका इंतज़ार कर रहे हैं। मैंने पूछा कि कुछ चाय-वाय उनके पास पहुँची है या नहीं? सुबोध ने कहा, ‘महेंद्र सेठिया हैं उनके साथ। मैं भी कक्ष में बिना पूछे दाख़िल हो गया। सामने गहरे रंग का सफारी सूट पहने भारती जी बैठे थे। महेंद्र जी उन्हें ‘नई दुनिया’ के बारे में कोई जानकारी दे रहे थे। मैं एक सेकंड उन्हें देखता रहा -तो ये हैं गुनाहों का देवता के लेखक। मैं आगे बढ़ा तो महेंद्र सेठिया ने मेरा परिचय उनसे कराया।
इसके बाद डॉक्टर भारती से बातचीत शुरू हो गई। देर तक गपशप। मैं प्रभावित था। हिन्दुस्तान की सबसे लोकप्रिय पत्रिका का संपादक। इतना सहज। तनिक देर में राजेंद्र माथुर आ गए। उनके साथ भारती जी पहली मंज़िल पर उनके कक्ष में चले गए। बाद में अभय छजलानी भी चर्चा में शामिल हो गए। मैं अपनी डेस्क पर आ गया।
बहरहाल! ‘नई दुनिया’ के मेरे साथी प्रकाश हिन्दुस्तानी का चुनाव धर्मयुग के लिए हो गया। वे मुंबई में थे। लेकिन तब धर्मयुग के अंदर के माहौल ने विचलित कर दिया। भारती जी के दफ़्तर में कर्फ़्यू सा लगा रहता था। सहयोगियों में उनका ख़ौफ़ था। भाई प्रकाशजी ने तो इसी कारण अपना तबादला ‘नवभारत टाइम्स’ में करा लिया। इसी बीच एक दिन उन्होंने मुझे धर्मयुग में काम करने का प्रस्ताव दिया। मेरी आदत राजेंद्र माथुर जैसे प्रधान संपादक के साथ काम करने की हो चुकी थी। एकदम सहज। कोई ईगो नहीं। हरदम मुस्कुराते हुए। कभी भी उनसे जाकर मिल सकता था। भारती जी इसके उलट थे। मैंने विनम्रता से प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। लेकिन उनका बड़प्पन था कि वे मेरे लेख छापते रहे। मनमोहन सरल, गणेश मंत्री, विश्वनाथ सचदेव और अनेक वरिष्ठ मित्रों से इसी दौर में रिश्ते का सिलसिला शुरू हो गया। हरीश पाठक और अवधेश व्यास तो जैसे दोस्त तो वहाँ थे ही।
मेरे लिए डॉक्टर धर्मवीर भारती की याद याने ‘गुनाहों का देवता’ के चन्दर को याद करने का भी एक कारण है। ‘सूरज का सातवाँ घोड़ा’ भी ऐसी ही एक नायाब रचना है।
भारती जी की पहली पत्नी कांता भारती ‘गुनाहों का देवता’ की सुधा मानी जाती हैं। उनसे अलग होने के बाद कांता जी ने एक उपन्यास लिखा - ‘रेत की मछली’। इन दोनों के रिश्तों में प्यार से तक़रार का आभास तभी मिलेगा, जब आप ‘रेत की मछली’ पढ़ेंगे। कहा जाता है कि ‘गुनाहों का देवता’ में सुधा के क़िरदार के साथ नाइंसाफ़ी थी। इसमें सुधा की एक बहन विनती भी होती है। वह चन्दर को राखी भी बांधती थी। इसी कारण ‘रेत की मछली’ सामने आया। ‘रेत की मछली’ में कुंतल का किरदार ख़ुद कांता जी का आप मान सकते हैं। कांता भारती को लगता रहा कि ‘गुनाहों का देवता’ में उसके साथ अन्याय हुआ है। इसलिए उन्होंने ‘रेत की मछली’ में एक तरह से अपना पक्ष रखा। उसमें नायक शोभन को उन्होंने अपनी कथित बहन के साथ हमबिस्तर देखा। न केवल यह, बल्कि उस बिस्तर में नायिका को भी जबरन साथ लिया और बोले, ‘एकात्म हो जाने दो। कुंतल आओ। हम सब एकात्म हो जाएँ। मैं, मीनल, तुम। हम सब में उस सुख को बहने दो।’ उन्होंने लिखा, ‘क्षोभ और हताशा से मेरा तन मन काँप रहा था। सचमुच मेरा सर टूट गया था। जहाँ सिन्दूर की रेखा होती है, ठीक वहीं से उसके दो टुकड़े हो गए थे। आह! शोभन। यह कैसे हुआ? वह मीनल थी न? तुम्हारी बहन? रिश्ते का यह कैसा अपवाद? मरियम कहा था तुमने मीनल को? और आज यह नीला प्रसंग। शोभन नहीं! नहीं’!
इसके बाद कुंतल की पिटाई होती रही। सर बार-बार फूटे और एक दिन जबरन अलगाव -पत्र पर हस्ताक्षर। इसके बाद कुंतल को बदनाम करने का सिलसिला। उस पर दुष्चरित्र होने के आरोप। साहित्यकार मित्रों में शोभन निंदा के पात्र बन गए। एक दिन सौ रुपए देकर कुंतल को घर से निकाल दिया गया। कुंतल जॉब के लिए दर-दर भटकी। आत्मविश्वास बिखरा। कुंतल ने लिखा, ‘यह रेत है सामने। कहते हैं रेत से घर नहीं बनता। अच्छा है कि घर नहीं बनता। कितनी सम्मोहक है ये रेत। घर नहीं बनाने देती। लेकिन हर रखा हुआ पाँव कोमलता से समेट लेती है। फिर उतनी ही कोमलता से उसे छोड़ भी देती है। इसकी तपन मन को नहीं, तन को जलाती है। मुझे और चाहिए भी क्या? रिश्तों की आग में जहाँ मन जला था, वहाँ तो कुछ नहीं उगेगा अब। लेकिन इस तपती रेत में अब जो जलता है, वहाँ कुछ उग रहा है। देखो कहीं वह मैं तो नहीं। उफ़! कितना तक़लीफ़देह है रेत की मछली का समापन। इसके बाद कांता भारती ने आकाशवाणी और दूरदर्शन में लंबे समय तक काम किया। दूसरी शादी की। नई सदी में कांता जी ने इस जहाँ को अलविदा कह दिया।
![doctor dharmveer bharti birth anniversary gunahon ka devta - Satya Hindi doctor dharmveer bharti birth anniversary gunahon ka devta - Satya Hindi](https://satya-hindi.sgp1.digitaloceanspaces.com/app/uploads/26-12-19/5e049778274c0.jpg)
अपनी राय बतायें