एक सौ तीस करोड़ की देश की कुल आबादी में अगर अस्सी करोड़ लोगों को सरकार द्वारा दिए जाने वाले मुफ़्त के अनाज की ज़रूरत है वरना उन्हें या तो भूखे पेट रहना पड़ेगा या फिर आधे पेट सोना पड़ेगा तो क्या यह स्थिति अत्यंत भयावह नहीं है? क्या मुल्क के बाक़ी बचे कोई पचास करोड़ नागरिकों को देश की इस हक़ीक़त का पहले से पता था या फिर उन्हें भी पहली बार ही आधिकारिक रूप से जानकारी हुई है और वह भी प्रधानमंत्री के द्वारा। इसका खुलासा प्रधानमंत्री ने मंगलवार को अपने सोलह मिनट और नौ सौ साठ शब्दों के सम्बोधन में किया।
सिर्फ़ पचास करोड़ लोगों को ही मुफ़्त का अनाज नहीं चाहिए!
- विचार
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- 2 Jul, 2020

कहीं ऐसा तो नहीं है कि जनता अपने प्रधानमंत्री के कहे के प्रति धीरे-धीरे उदासीन होती जा रही है, उनके कहे का ठीक से पालन नहीं कर रही है और इनमें वे बाक़ी पचास करोड़ भी शामिल हैं जिन्हें मुफ़्त का अनाज नहीं चाहिए? प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल का अभी पहला ही साल ख़त्म हुआ है। चार साल अभी और बाक़ी हैं।