यह दुनिया कुछ ऐसे चलती है कि नन्हें-नन्हें निर्दोष या असहाय से नज़र आने वाले बच्चों की सजीव आँखों या फिर उनके निर्जीव शरीरों से व्यक्त होने वाली व्यथाओं में मानवता के लिए बेहतर भविष्य की उम्मीदें तलाश की जाती हैं।
दीया मिर्ज़ा ने तो पूछ लिया है! आप क्या सोचते हैं?
- विचार
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- 4 Jul, 2020

सोपोर का यह बच्चा जैसे-जैसे बड़ा होगा, क्या उसके कानों में गूंजने वाली ‘ठक, ठक’ की आवाज़ बंद हो जाएगी और उसकी संवेदना संबित पात्रा द्वारा जारी किए गए चित्र और उसके शीर्षक को बर्दाश्त कर पाएगी? दीया मिर्ज़ा ने तो पात्रा से पूछ लिया है कि: ‘क्या आपमें तिलमात्र भी संवेदना नहीं बची है?’ एक पाठक के तौर पर आप क्या सोचते हैं?