यह दुनिया कुछ ऐसे चलती है कि नन्हें-नन्हें निर्दोष या असहाय से नज़र आने वाले बच्चों की सजीव आँखों या फिर उनके निर्जीव शरीरों से व्यक्त होने वाली व्यथाओं में मानवता के लिए बेहतर भविष्य की उम्मीदें तलाश की जाती हैं।