अब तालाबंदी में ढील की घोषणा तो हो गई लेकिन ज़मीनी असलियत क्या है? लोगों में मौत का डर इतना गहरा बैठ गया है कि कारखानेदार, दुकानदार और बड़े अफ़सर अपने कर्मचारियों को अपने दफ्तरों में बुला रहे हैं लेकिन वे आने को ही तैयार नहीं हैं। चंडीगढ़ में हरियाणा सरकार के ऊँचे अफ़सर अपनी-अपनी कुर्सी पर कल आ बैठे लेकिन बाबू लोग ग़ायब हैं। नागरिक भी आस-पास नहीं दिखाई पड़ रहे हैं।
कोरोना: कर्मचारी काम पर क्यों नहीं जा रहे, क्या सिर्फ़ वायरस का ही डर?
- विचार
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- 22 Apr, 2020

यदि महाराष्ट्र के पालघर में तीन लोगों की हत्या-जैसी हृदय विदारक घटनाएँ हो रही हैं तो देश में कई जगह हमारे पुलिस, अफ़सर, डाॅक्टर, नर्स वगैरह अपनी जान पर खेलकर लोगों की जान बचा रहे हैं। आम लोगों से यही उम्मीद है कि वे अपने दिल से मौत का डर निकाल दें। अपने मन को बुलंद रखें। कोरोना के ख़िलाफ़ पूरी सावधानी रखें और अपने काम में जुट जाएँ।
दिल्ली के पास के कुछ गाँवों में बड़े-बड़े कारख़ाने हैं लेकिन उनके मालिकों को यही समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें चालू कैसे करें। एक गाँव के कारख़ानों में 22 हज़ार मज़दूर काम करते हैं लेकिन उनमें से कल सौ भी दिखाई नहीं पड़े। उनमें से ज़्यादातर तो अपने गाँवों में भाग गए हैं। वे अब वापस कैसे आएँ? न रेल चल रही है, न बसें। जो मज़दूर कारख़ानों से 5-10 किमी की दूरी में रहते हैं, वे कैसे पैदल आएँ-जाएँ और पुलिस के ग़ुस्से से कैसे बचें?