लॉकडाउन काल अब बहुत निष्ठुर और निर्मम दौर में आ पहुँचा है। ज़रा भी अपने घेरे से निकलिए। बाहर झाँकिए। और ग़रीब बस्तियों की आहट भर लीजिए। बिना ध्वनि की चीत्कारें आपका दिल चीरकर रख देती हैं। अजीब मुर्दनी सी छा गयी है, इन बस्तियों में। भूख और रोटी न मिलने की आशंका इन्हें बेचैन किये है। वे यही सवाल करते हैं, बाबू जी ये किरौना कब बिदाई लेगा? रामनायक का सवाल था।