लॉकडाउन काल अब बहुत निष्ठुर और निर्मम दौर में आ पहुँचा है। ज़रा भी अपने घेरे से निकलिए। बाहर झाँकिए। और ग़रीब बस्तियों की आहट भर लीजिए। बिना ध्वनि की चीत्कारें आपका दिल चीरकर रख देती हैं। अजीब मुर्दनी सी छा गयी है, इन बस्तियों में। भूख और रोटी न मिलने की आशंका इन्हें बेचैन किये है। वे यही सवाल करते हैं, बाबू जी ये किरौना कब बिदाई लेगा? रामनायक का सवाल था।
लॉकडाउन: 'माँ बापू का काम छूटा है, आज पहली बार भीख माँगने निकली तो माँ ख़ूब रोई'
- विचार
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- 11 May, 2020

प्रतीकात्मक तसवीर।
लॉकडाउन काल अब बहुत निष्ठुर और निर्मम दौर में आ पहुँचा है। ज़रा भी अपने घेरे से निकलिए। बाहर झाँकिए। और ग़रीब बस्तियों की आहट भर लीजिए। बिना ध्वनि की चीत्कारें आपका दिल चीरकर रख देती हैं।
रामनायक नोएडा के गेझा गाँव में रहता है। वैसे ओडिशा का रहने वाला है। साल में एक या दो बार अपने देस जाता है। परिवार वहीं रहता है। यहाँ किराए के कमरे में तीन अन्य साथियों के साथ रहता है। पेशे से प्लंबर है। लेकिन एक साल पहले एक अपार्टमेंट से नौकरी छूट गयी थी। सो ख़ुदरा काम करता आया है। अब सब ठप है। गाँव हर महीने ख़र्च भेजता था। वहाँ पत्नी और माँ बीमार है। वहाँ से रोज़ फ़ोन आता है। उधार लेकर कुछ भेजा था। अब किससे माँगे? सारे साथियों का हाल तो ऐसा ही है।