वे कौन लोग हैं जो ज्ञानवापी से लेकर क़ुतुब मीनार के परिसर तक में पूजा करने की इच्छा के मारे हुए हैं? किन्हें अचानक 800 साल पुरानी इमारतें पुकार रही हैं कि आओ और अपने ईश्वर को यहां खोजो। क्या यह वाक़ई किसी ईश्वर की तलाश है, किसी धर्म की पवित्रता का ख़याल है जो उन्हें मसजिदों से कचहरियों तक दौड़ा रहा है?
आप अंततः क्या बनना चाहते हैं- दारा शिकोह या औरंगजेब?
- विचार
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- 25 May, 2022

भारत में ज्ञानवापी मसजिद विवाद, कुतुब मीनार का विवाद क्यों खड़ा किया जा रहा है? क्या अब नये औरंगजेब आ गए हैं?
इस सवाल का जवाब कुछ असुविधाजनक है। इस देश में हर किसी को अपनी आस्था के मुताबिक़ पूजा-अर्चना करने का अधिकार है- इस अधिकार में अपनी आस्था और अपने ईश्वर चुनने और उन्हें बदलने का अधिकार भी शामिल है।
लेकिन जो इन पुरानी इमारतों पर नई दावेदारी के लिए निकले हैं, उनके दिल में पूजा नहीं, प्रतिशोध है, हिंदुत्व की शक्ति की तथाकथित प्रतिष्ठा का भाव है। वे नए औरंगज़ेब हैं जो पुराने औरंगज़ेब से बदला लेने चले हैं। औरंगज़ेब ने अपने बाप को जेल में डाला, अपने भाई का क़त्ल किया, बादशाहत हासिल की और यह सब करते हुए कई मंदिर भी तोड़े। उसे भी शायद यह इसलाम की प्रतिष्ठा के लिए ज़रूरी लगा होगा। लेकिन इसलाम हिंदुस्तान में औरंगज़ेब की तलवार से नहीं, उन सूफ़ी कव्वालियों से परवान चढ़ा जो अमीर-ग़रीब सबको यकसाँ छूती-जोड़ती रहीं, वह उन मज़ारों और दरगाहों की मार्फ़त लोगों के बीच पहुँचा जहाँ सभी आस्थाओं के लोग एक सी आस्था के साथ पहुंचते रहे, वह उन शायरों की बदौलत बुलंद हुआ जिन्होंने सबसे ज़्यादा मज़ाक़ खुदा के नाम पर बरती जाने वाली मज़हबी संकीर्णता का उड़ाया।