वे कौन लोग हैं जो ज्ञानवापी से लेकर क़ुतुब मीनार के परिसर तक में पूजा करने की इच्छा के मारे हुए हैं? किन्हें अचानक 800 साल पुरानी इमारतें पुकार रही हैं कि आओ और अपने ईश्वर को यहां खोजो। क्या यह वाक़ई किसी ईश्वर की तलाश है, किसी धर्म की पवित्रता का ख़याल है जो उन्हें मसजिदों से कचहरियों तक दौड़ा रहा है?