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मोदी सरकार: चुनौतियों व उपलब्धियों के सात साल 

कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच केंद्र में मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के दो वर्ष और कुल मिलाकर सात वर्ष पूरे हो गए हैं। 2014 में पहली बार जब बीजेपी सत्ता में आई तब देश के सामने कई चुनौतियाँ थीं। आज उन चुनौतियों से देश को उबारने में मोदी सरकार कितना कामयाब हो पाई है, इस पर चर्चा ज़रूरी है।

पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद नरेंद्र मोदी ने कहा था कि 'मेरी सरकार ग़रीब कल्याण को समर्पित है।' ऐसा कहना 'कल्याणकारी राज्य' की अवधारणा पर आगे बढ़ने का संकेत था। सवाल था 'गरीब कल्याण' की भावना को मोदी अमल में कैसे लायेंगे। यह सवाल इसलिए भी था कि गरीब कल्याण के वादों का बुरा हश्र देश ने दशकों तक देखा है। निश्चित ही पुराने घिसे-पिटे ढर्रे पर चलने की बजाय नीतिगत बदलावों तथा नवाचारों को अपनाने की ज़रूरत थी। 

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गरीब कल्याण की राह में सबसे बड़ा रोड़ा था गरीब का हक़ सीधे गरीब तक नहीं पहुँच पाना। दशकों तक भारत ने ऐसा कोई पारदर्शी तंत्र नहीं विकसित किया, जिसके माध्यम से गरीब का हक़ सीधे गरीब को पहुंचाया जा सके। देश के करोड़ों गरीब परिवार ऐसे थे जो मुख्यधारा के अर्थतंत्र से बाहर थे। उनका बैंक खाता न होने की वजह से कोई भी आर्थिक लाभ सीधा लाभार्थी को दे पाना संभव नहीं था। देश करोड़ों गरीबों को बैंकों से जोड़े बिना गरीब कल्याण के दावे पूरे नहीं किये जा सकते थे। आज देश के 42 करोड़ से अधिक लोग जनधन योजना के तहत बैंकों से जुड़ चुके हैं। गरीबों के आर्थिक उत्थान में इसका बड़ा लाभ हुआ कि 54 मंत्रालयों की 319 योजनाओं का आर्थिक लाभांश बिना किसी बिचौलिए के सीधे लाभार्थियों के खाते में पहुँचना संभव हो रहा है। कोरोना काल में आम जनता को त्वरित आर्थिक सहायता में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर का तंत्र रामबाण साबित हुआ है। करोड़ों किसानों, महिलाओं, प्रवासियों को सरकार सीधा मदद पहुँचा पा रही है।  

कार्यशैली तथा नीतिगत बदलावों से कैसे योजनाओं की तस्वीर बदल सकती है, जनधन योजना इसका एक उदाहरण है। निस्संदेह अपने वादों और दावों में कोई भी सरकार गरीब कल्याण की विरोधी नहीं होती। कई सरकारें गरीब कल्याण की नीयत भी रखती हैं। किंतु कोई सरकार 'गरीब कल्याण की भावना रखे, इतना पर्याप्त नहीं होता। उसे अमल में लाने के लिए सही नीति, सटीक निर्णय और सशक्त नेतृत्व मायने रखता है। भाजपा की मोदी सरकार आने के बाद यह बदलाव देश ने महसूस किया है। 

अपने पहले पांच साल के कार्यकाल में जनहित के साथ-साथ आर्थिक सुधारों तथा कानूनी जटिलताओं से ईज ऑफ़ डूइंग तक के लिए मोदी सरकार ने सही नीयत के साथ सफल प्रयास किये हैं। देश में निवेश बढ़े, उत्पादन की क्षमता बढ़े, स्व-रोजगार को बढ़ावा मिले, आधारभूत संरचना के विकास में गति आये तथा भारत की साख दुनिया में मजबूत हो, इन सबको लेकर मोदी सरकार ने चौतरफा कार्य किये। सही व पारदर्शी नीति होने की वजह से अनेक कार्य एक साथ बिना किसी आपसी टकराव के हुए। यही कारण था कि 2019 के आम चुनावों में देश ने मोदी को पिछली बार की तुलना में बड़े जनादेश के साथ सत्ता की कमान सौंपी। 

किसी भी सरकार के कामकाज का संपूर्ण मूल्यांकन उसकी वैचारिक प्रतिबद्धता तथा घोषणापत्र में किये वायदों की अनदेखी करके नहीं की जा सकती है।

2019 में सरकार बनने के बाद हुए संसद के पहले ही सत्र में सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 को समाप्त करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया। राज्य को दो भागों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में बाँटकर केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा दिया। पिछले कार्यकाल से राज्यसभा में अटका हुआ तीन तलाक के विरुद्ध कानून पारित कराने में भी सरकार सफल रही। 9 नवंबर, 2019 को श्रीरामजन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय आया। इसी क्रम में संसद के शीतकालीन सत्र में नागरिकता संशोधन कानून पारित होना भी मोदी सरकार की एक बड़ी उपलब्धि रही। ये सारे निर्णय बहु-प्रतिक्षित तथा दशकों से लंबित थे। मोदी सरकार अपनी विचारधारा और अपने घोषणापत्र के मुताबिक़ इसे पूरा करने में सफल रही। यह सब करते हुए सरकार को शायद अंदाजा भी नहीं रहा हो कि आने वाले समय में उसका सामना आज़ाद भारत की सबसे बड़ी चुनौती से होने जा रहा है। 

modi govt 7 years rule and challenges  - Satya Hindi
भारत में कोरोना का पहला मामला 27 जनवरी, 2020 को केरल में सामने आया था। इसके बाद संक्रमण बढ़ते-बढ़ते मार्च तक पूरे देश में फैलने लगा था। सरकार और जनता दोनों के लिए यह संकट एकदम नया और अबूझ पहेली की तरह था। मोदी सरकार संपूर्ण लॉकडाउन के विकल्प पर आगे बढ़ी। एक सौ तीस करोड़ आबादी वाले विशाल देश में यह एक साहसिक फ़ैसला था। इस फ़ैसले के बाद श्रमिकों का पलायन सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती के रूप में आया। 
लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में अफरा-तफरी की स्थिति भी पैदा हुई, जो स्वाभाविक भी थी। लेकिन सरकार राज्यों से संपर्क और संवाद करते हुए तय योजना के साथ विशेष ट्रेनें चलाकर श्रमिकों को उनके घर तक सुरक्षित पहुँचाने का काम किया और यह समस्या अधिक बड़ा रूप नहीं ले पाई।

लॉकडाउन में रोजगार न होने से देश के गरीबों को रोजी-रोटी का संकट न हो, इसके लिए लॉकडाउन के तुरंत बाद ही 170 लाख करोड़ रुपये के प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज के माध्यम से किसानों, महिलाओं, बुजुर्गों तथा श्रमिकों के खातों में नियमित रूप से धनराशि भेजी गयी तथा राशनकार्ड धारकों को परिवार के प्रति व्यक्ति के हिसाब से पाँच किलो मुफ्त अनाज देने की व्यवस्था की गई। इस योजना के अंतर्गत लगभग अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज उपलब्ध कराया गया। इसके अतिरिक्त कोरोना से आमने-सामने की लड़ाई लड़ रहे कोरोना योद्धाओं के लिए भी बीमा योजना की शुरुआत की गयी। 

इसी दौरान 12 मई, 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा 20 लाख करोड़ के राहत पैकेज की घोषणा करते हुए आत्मनिर्भर भारत अभियान की शुरुआत की गयी। एक आंकड़े के मुताबिक़, जनवरी, 2020 तक देश में आयातित 275000 पीपीई किट ही थे, लेकिन मार्च में कोरोना का कहर शुरू होने के लगभग दो महीने के अंदर ही सरकार के प्रयासों से स्थिति यह हो गयी कि भारत प्रतिदिन दो लाख पीपीई किट का उत्पादन करने लगा। जुलाई तक देश पीपीई किट का निर्यात करने लगा था। भारत ने टेस्टिंग क्षमता को भी तेजी से बढ़ाया। बहुत कम समय में देश में सैकड़ों टेस्टिंग सेंटर काम करने लगे। 

 

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कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में देश हर मोर्चे पर मुस्तैद दिखा। स्थिति को संभालने के साथ-साथ देश ने अपने स्तर पर दो-दो वैक्सीन का परीक्षण पूरा करने के बाद टीकाकरण अभियान भी शुरू कर दिया। ताजा स्थिति में देश में 20 करोड़ के आसपास लोगों का पहला डोज टीकाकरण पूरा हो चुका है। एक समय ऐसा लगने लगा कि देश इस महामारी से जल्द ही पूरी तरह से पार पा लेगा। लेकिन तभी मार्च में इसकी दूसरी लहर ने पाँव पसारने शुरू कर दिए।

यह स्वीकारने में कोई गुरेज नहीं होनी चाहिए कि कोरोना की दूसरी लहर अधिक खतरनाक साबित हुई है। लेकिन केंद्र सरकार ने इस कठिन परिस्थिति में राज्यों को ऑक्सीजन की उपलब्धता से लेकर अन्य सहायता तक के लिए हमेशा तैयार दिखी। पीएम केयर्स फंड से 200 करोड़ से अधिक की राशि राज्यों को ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए समय रहते केंद्र सरकार द्वारा दे दी गयी थी, लेकिन राज्यों की तरफ से इसको लेकर समय रहते उत्साह कम दिखाया गया। राज्यों की उदासीनता और समय रहते तैयारी में कमी भी दूसरी लहर की विभीषिका का एक कारण है। कोरोना की इस दूसरी लहर से भी निपटने के लिए सरकार युद्धस्तर पर प्रयासरत है और दिन-प्रतिदिन स्थिति में सुधार देखने को मिल रहा है। इस लड़ाई को आरोप-प्रत्यारोप की बजाय एकजुटता से लड़ने में ही देश और समाज का हित हो सकेगा।

(लेखक भाजपा के थिंक टैंक एसपीएमआरएफ़ में सीनियर फैलो हैं।)

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शिवानंद द्विवेदी
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