एक महाराष्ट्रीयन ब्राह्मण डॉ. हेडगेवार द्वारा 1925 में स्थापित आरएसएस अपनी स्थापना के 100 वर्ष पूरे करने जा रहा है। आज यह देश का सबसे बड़ा और मजबूत संगठन है। पिछले 10 सालों से केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार है। इस एक दशक में आरएसएस का तेजी से विस्तार हुआ है। देश की तमाम संस्थाओं पर आरएसएस का कब्जा है। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, श्रीराम सेना जैसे सैकड़ों उसके आनुषंगिक संगठन हैं। आरएसएस देश का एक ऐसा संगठन है जिसकी गतिविधियां अनिवार्य रूप से प्रतिदिन संचालित होती हैं। इनमें शारीरिक व्यायाम और बौद्धिक चर्चा शामिल है। आरएसएस का दावा है कि आज पूरे देश में गांव कस्बों से लेकर शहरों महानगरों तक पसरी करीब 58 हजार शाखाएं हैं। पिछले 10 वर्षों में शाखाओं का तेजी से विस्तार हुआ है। शिक्षण संस्थानों से लेकर विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी संस्थानों में आरएसएस के लोगों का दबदबा है। वास्तव में, ऐसी तमाम संस्थाओं की कार्य योजनाओं और नीतियों में आरएसएस का प्रभाव और रुतबा बढ़ा है। ये संस्थान आरएसएस के एजेंडे पर काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आरएसएस के प्रतिबद्ध प्रचारक हैं। इसलिए माना जाता है कि आज की भारत सरकार प्रकारांतर से आरएसएस की ही सरकार है।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी स्थापना के सौ वर्ष मनाने जा रहा है। इस मौके पर इस बात पर शिद्दत से विचार किया कि आखिर आरएसएस ने देश को दिया क्या। इस संगठन का आजादी की लड़ाई में कोई योगदान नहीं था। अलबत्ता इसने देश में साम्प्रदायिकता को हवा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अब जो तस्वीर सामने आ रही है, उससे लगता है कि यह संगठन वर्ण और ब्राह्मणवाद को भी बढ़ावा देता है। इसके पास महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी से लड़ने के लिए कोई रोडमैप नहीं है। रविकान्त के इस लेख में इसी मुद्दे पर रोशनी डाली गई है।
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।