मशीनें लाचार हैं, क्योंकि वे मानव-निर्मित तकनीक पर निर्भर हैं। इंसान ही उनका जन्मदाता है और वे उसी की ग़ुलामी करती हैं। लेकिन इतिहास गवाह है कि कोई तकनीक न तो चिरंजीवी होती है और न कालजयी। हरेक तकनीक का अपना कार्यकाल होता है। नई तकनीकों से पुरानी का सफ़ाया होता है। ईवीएम भी एक तकनीकी उपकरण है। इसका जीवनकाल पूरा हो चुका है! अब हमें वापस बैलट पेपर यानी मतपत्र की ओर लौटना होगा। यह काम जितनी जल्दी होगा, उतना ही लोकतंत्र फ़ायदे में रहेगा। ताज़ा विधानसभा चुनावों ने उन आरोपों को और पुख़्ता किया है कि ईवीएम में घपला हो सकता है। बेशक यह हुआ भी है! तर्कवादी इसका सबूत चाहेंगे। यह स्वाभाविक है। मेरे पास घपलों के सबूत नहीं हैं। लेकिन प्रति-तर्क ज़रूर हैं।
ईवीएम पर शक बरकरार, उसको अलविदा कहना ज़रूरी है
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- 24 Apr, 2019


2014 के बाद हुए तमाम विधानसभा चुनावों में ईवीएम की सच्चाई पर जितने सवाल उठाए गए, वैसा पहले कभी नहीं हुआ। सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद चुनाव आयोग ने भी अपनी साख बचाने के लिए वीवीपैट की जुगत अपनाई। लेकिन इससे भी ईवीएम की प्रतिष्ठा बहाल नहीं हुई।
मुकेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं। 28 साल लम्बे करियर में इन्होंने कई न्यूज़ चैनलों और अख़बारों में काम किया। पत्रकारिता की शुरुआत 1990 में टाइम्स समूह के प्रशिक्षण संस्थान से हुई। पत्रकारिता के दौरान इनका दिल्ली


























