कस्तूरबा गांधी । गांधी जी की पत्नी । क्या वो डायरी लिखती थी ? लेकिन उनके बारें में तो मशहूर था कि वो पढ़ी लिखी नहीं थी । वो लिखती थी । ये सच है । उनकी डायरी गांधी जी और तब के भारत की एक नई तस्वीर पेश करती है । लेकिन खुद वो कैसी थी कस्तूरबा ? गांधी की के बारे में क्या सोचती थी?
30 जनवरी, 1948, को गांधी जी की हत्या । अहिंसा के पुजारी को हिंसा के उपासकों ने मार दिया । आने वाले समय में गांधी के हे राम पर कैसे भारी पड़ गया जयश्री राम ? वो कौन से कारण थे ? क्यों भारत का संविधान हिंसा के मानने वालों को रोक नहीं पाया ? इस सवाल का जवाब खोजती एक किताब ।
30 जनवरी, 1948, को गांधी जी की हत्या । अहिंसा के पुजारी को हिंसा के उपासकों ने मार दिया । आने वाले समय में गांधी के हे राम पर कैसे भारी पड़ गया जयश्री राम ? वो कौन से कारण थे ? क्यों भारत का संविधान हिंसा के मानने वालों को रोक नहीं पाया ? इस सवाल का जवाब खोजती एक किताब ।
वैसे तो टीवी पत्रकारिता को लेकर कई किताबें आ चुकी हैं, लेकिन वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश राजपूत की नयी किताब में उन घटनाओं का ज़िक्र है जो टेलीविजन पर नहीं आ सका है। पढ़िए, समीक्षा में इस किताब में क्या है ख़ास।
रोहिण कुमार की किताब लाल चौक में कश्मीर के समकालीन इतिहास के साथ ही मौजूदा परिदृश्य की जटिलताओं और उलझावों को दर्शाया गया है। कैसी है यह किताब, जानिए पुस्तक समीक्षा में।
जानी-मानी लेखिका अरुंधति रॉय की नयी क़िताब 'आज़ादी' आई है। यह 2018 से लेकर 2020 तक लिखे गए उनके लेखों या दिए गए व्याख्यानों का संकलन है। पढ़िए इसकी समीक्षा कि इसमें आख़िर क्या ख़ास है।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के संस्मरणों की किताब ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ की किताब आ चुकी है। नवारुण प्रकाशन ने इसका प्रकाशन किया है। पढ़िए, प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव से इसकी समीक्षा।
प्रसिद्ध नारीवादी निवेदिता मेनन की किताब 'सीइंग लाइक अ फेमिनिस्ट' का हिंदी अनुवाद 'नारीवादी निगाह से' नाम से हाल ही में प्रकाशित हुआ है। किताब बड़ी सरलता से हमे मौजूदा व्यवस्था, जेंडर अवधारणाओं और व्यवहारिक प्रयोगों के विरोधाभासों से रूबरू करती हैं।
एक तबका गांधी की हत्या को सही ठहराने की भौंडी और वीभत्स कोशिश कर रहा है। तब एक बार फिर गांधी की हत्या पर नये सिरे से पड़ताल की ज़रूरत थी। अब यह नई कोशिश एक किताब- ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ की शक्ल में सामने आयी है।
डॉ. मुकेश कुमार की पुस्तक ‘मीडिया का मायाजाल’ मीडिया विषयक चार दर्जन लेखों का संग्रह है जिसमें बीते चार-पाँच साल में मीडिया के स्वभाव में आए परिवर्तन चिंता के साथ व्यक्त हुए हैं।