दलितों और पिछड़ों के साथ जैसा भेदभाव समाज में होता है, क्या वैसा ही भेदभाव मीडिया में भी होता है? यदि मीडिया में इनका प्रतिनिधित्व नहीं होगा तो उनके मुद्दे क्या सही से उठेंगे?
ईसाई, मुसलिम बनने वाले अनुसूचित जाति के लोगों की स्थिति कैसी है, यह जानने के लिए सरकार कमेटी बनाने पर विचार क्यों कर रही है? जानिए, इसका मक़सद क्या है।
मोहन भागवत जब यह कहते हैं कि देश के हिन्दू-मुसलमान सबका डीएनए एक है तो इसके क्या मायने हैं? क्या इसमें दलित, आदिवासी और मुसलमानों का समावेशी विकास भी शामिल है?
हमारे लेखकों, साहित्यकारों ने दलित समाज के कष्टों, अपमान और संघर्षों को अपनी लेखनी के माध्यम से पूरे विश्व के सामने रखा। दलति साहित्य के बारे में बता रहे हैं शैलेंद्र चौहान।
पिछले कुछ सालों से देश में दलित-मुस्लिम एकता का शोर मचा हुआ है। यह कोई बात नहीं है। आज़ादी के पहले मुस्लिम लीग ने भी कुछ ऐसा ही नारा दिया था। इस नारे के पीछे की सचाई क्या है?
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के निर्देश पर दलित इंडियन चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के शोध विंग ने एक रिपोर्ट में कहा है कि अभ्यर्थियों के उपनाम छुपा दिए जाएँ तो उनको बराबरी का मौक़ा मिल सकता है।
भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने विगत 8 फ़रवरी को न्यूज़ चैनलों के स्व-नियमन संस्था को लिखा है कि कुछ चैनलों ने अपनी ख़बरों में दलित शब्द का प्रयोग किया है जो प्रोग्राम कोड के तीन उपबंधों का उल्लंघन है।