दोस्तोवस्की की कालजयी रचना 'ह्वाइट नाइट्स' के मंचन ने दर्शकों को उजली स्वप्निल रातों की दुनिया में ले जाकर प्रेम, अकेलेपन और आशा की गहरी अनुभूति कराई। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
नुपूर चिताले के नाटक 'जलेबी' में आधुनिक महिला की आकांक्षाओं और समाज में उसकी भूमिका को कबीर के विचारों से जोड़ा गया है। पढ़िए, रवींद्र त्रिपाठी की टिप्पणी।
मोहन राकेश के नाटक 'आधे अधूरे' का भारतीय रंगमंच में महत्वपूर्ण योगदान है। यह नाटक पारिवारिक संघर्ष, सामाजिक असंतोष और यथार्थवाद को गहराई से उजागर करता है। जानिए इसकी अद्वितीयता।
भारंगम 2025 में ‘कर्ण’ नाटक का मंचन किया गया। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की गाथा को प्रस्तुत किया गया है। पढ़िए, इस नाट्य प्रस्तुति की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से...
`बिदेसिया’ लोकनाटक नहीं है, एक आधुनिक नाटक है। रूसी लेखक अंतोन चेखव का लिखा `अंकल वान्या’ सर्वसम्मत रूप से आधुनिक नाटक है। पढ़िए, इनके मंचन की समीक्षा, रवींद्र त्रिपाठी की क़लम से...।
एलटीजी ऑडिटोरियम में जो नाटक मंचित हुआ वो हैमिल्टन के नाटक का हिंदी रूपांतर है। नाम वही है लेकिन रूपांतर बिल्कुल भारतीय परिवेश में किया गया। चार्ल्स शोभराज का मिथक बरकरार है!
शैलेश लोढ़ा वैसे तो छोटे पर्दे पर मनोरंजन के लिए मशहूर हैं, लेकिन उन्होंने दिल्ली के श्री राम सेंटर में `डैड्स गर्लफ्रेंड’ नाम के नाटक में काम किया। जानिए, कैसा है रहा उनका प्रदर्शन।
दिल्ली के कमानी सभागार में आद्यम थिएटर फेस्टिवल के दौरान अतुल कुमार द्वारा निर्देशित नाटक `द क्यूरियस इंसीडेंट ऑफ़ द डॉग इन द नाइट- टाइम’ का मंचन किया गया। पढ़िए, रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।
निर्देशक राजेश तिवारी के निर्देशन में पिछले शनिवार दिल्ली के श्रीराम सेंटर में `नन्ही जान के दो हाथ’ एक ऐसा प्रयोग था जिसमें दो कहानियों को इस तरह मिलाया गया कि वे अलग-अलग लगी ही नहीं। पढ़िए रवीन्द्र त्रिपाठी की समीक्षा।