अरविंद केजरीवाल
आप - नई दिल्ली
हार
अरविंद केजरीवाल
आप - नई दिल्ली
हार
सत्येंद्र जैन
आप - शकूर बस्ती
हार
प्रवेश सिंह वर्मा
बीजेपी - नई दिल्ली
जीत
संदीप दीक्षित
कांग्रेस - नई दिल्ली
हार
कांग्रेस ने राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की तरह ही तेलंगाना में भी किसानों का कर्ज़़ माफ़़ करने का वादा किया था। चुनाव घोषणापत्र और प्रचार में ‘कर्ज़़ माफ़़ी’ को ही सबसे ज़्यादा उछाला गया। कर्ज़माफ़ी के कांग्रेसी वादे का असर हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में तो साफ़ दिखा, लेकिन तेलंगाना में इसका कोई असर नहीं हुआ। बड़ी बात तो यह है कि तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) ने सिर्फ 1 लाख रुपये तक का कर्ज़ माफ़ करने का वादा किया था, जबकि कांग्रेस ने 2 लाख का। बावजूद इसके टीआरएस की शानदार जीत हुई और कांग्रेस की क़रारी हार।
टीआरएस की जीत की एक बड़ी वजह थे किसान। मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की एक योजना ने किसानों को टीआरएस की ओर लामबंद किया। इस योजना का नाम है 'रैतु बंधु', जिसका हिंदी में अर्थ है ‘किसान मित्र’। यह योजना तेलंगाना में पिछले साल ही शुरू की गई थी। इस योजना के तहत तेलंगाना सरकार ने किसानों को हर साल, दो फ़सली मौसमों के लिए चार-चार हज़ार रुपये प्रति एकड़ देना शुरू किया है। यानी, अगर किसी किसान के पास एक एकड़ किसानी/उपजाऊ ज़मीन है तो उसे फ़सल उगाने के लिए सरकार की ओर से सालाना 8 हजार रुपये दिए जाएँगे।
केसीआर ने चुनाव में 'रैतु बंधु' योजना की राशि को बढ़ाने का वादा किया और इसका उन्हें फ़ायदा भी मिला। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि 'रैतु बंधु' योजना ने टीआरएस की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सरकारी आँकड़ों के मुताबिक़, तेलंगाना में 10,874 गाँवों के क़रीब 57 लाख किसानों को 'रैतु बंधु' से लाभ मिल रहा है। बड़ी बात यह है कि इन किसानों में 90 फ़ीसदी किसानों के पास 10 एकड़ से कम ज़मीन है और 65 फीसदी किसानों के पास 5 एकड़ के कम ज़मीन है। यानी 'रैतु बंधु' योजना के लाभार्थी ज़्यादातर छोटे किसान हैं।
पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव से पहले टीआरएस की सरकार ने 'रैतु बंधु' योजना के तहत 57 लाख किसानों में 12 हजार करोड़ रुपये वितरित किए। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि एक योजना से 57 लाख लोगों को सीधे लाभ हुआ और सालाना 8000 रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से किसानों को सहायता राशि मिली। टीआरएस ने भले ही इसे सहायता राशि कहा हो लेकिन कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों ने इस योजना को चुनावी हथकंडा बताया और आरोप लगाया कि सरकार ने कृषि मज़दूरों को कुछ न देकर भूमिहीनों, ग़रीबों और ज़रूरतमंदों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ किया है।
तेलंगाना के सीएम केसीआर इन दिनों लोकसभा चुनाव के लिए फ़ेडरल फ़्रंट बनाने में जुटे हैं। केसीआर ने कहा है कि केंद्र में फ़ेडरल फ़्रंट की सरकार बनने पर वह 'रैतु बंधु' योजना को देश भर में लागू करना चाहते हैं।
'रैतु बंधु' और इसी तरह की दूसरी कल्याणकारी योजनाओं पर केसीआर को इतना भरोसा था कि उन्होंने समय से 9 महीने पहले ही विधानसभा भंग करवा दी थी। शुरू में तो कई लोगों को लगा था कि केसीआर ने समय से पहले विधानसभा को भंग कर दुबारा मुख्यमंत्री बनने की संभावनाओं को भी ख़त्म कर दिया है। साथ-साथ केंद्र में फ़ेडरल फ़्रंट यानी संघीय मोर्चा के नाम से ग़ैर-कांग्रेसी और ग़ैर-भाजपाई मोर्चा बनाने में भी जोर-शोर से जुट गए। इसी सिलसिले में उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और दूसरे बड़े नेताओं से मुलाक़ात भी की है। बड़ी बात यह है कि केसीआर ने एलान किया है कि केंद्र में फ़ेडरल फ़्रंट की सरकार बनने पर वे 'रैतु बंधु' योजना को देशभर में लागू करना चाहते हैं।
तेलंगाना के चुनाव में 'रैतु बंधु' की भूमिका जानने के बाद कई राज्यों की सरकारों ने इसके बारे में जानने-समझने के लिए अपनी टीमें हैदराबाद भेजीं। अब कई पार्टियाँ लोकसभा चुनाव के लिए अपने घोषणा-पत्र में 'रैतु बंधु' योजना जैसी ही किसी योजना को शामिल करने की सोच रही हैं। कुछ ही दिनों पहले यह ख़बर आई थी कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र किसानों को ख़ुश करने के लिए नई योजनाओं की घोषणा कर सकते हैं।
तेलंगाना के मुख्यमंत्री कार्यालय के सूत्रों की मानें तो मोदी भी देश-भर में 'रैतु बंधु' योजना को लागू करने की सोच रहे हैं। यह माना जा रहा है कि कि देश भर में किसान बीजेपी से काफ़ी नाराज़ हैं और वे चुनाव में उसे भारी नुक़सान पहुँचा सकते हैं। इसी नुक़सान से बचने और किसानों को अपने पक्ष में करने के लिए बीजेपी में ‘मंथन’ हो रहा है और मोदी सहित कई नेताओं को ‘रैतु बंधु' योजना में उम्मीद की किरण नजर आ रही है। कर्ज़ माफ़ी की घोषणा की वजह से राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से मात खा चुकी बीजेपी, लोकसभा चुनाव में किसानों की अनदेखी/नाराज़गी का जोख़िम नहीं उठाना चाहती है।
सूत्रों की मानें तो कांग्रेस को लगता है कि तीन राज्यों में हार से सबक लेकर बीजेपी भी किसानों का कर्ज़ माफ़ करने पर मजबूर होगी और ऐसे में उसे भी किसानों को अपने साथ बनाए रखने के लिए कुछ बड़ा करना होगा। कांग्रेस भी ‘रैतु बंधु' योजना जैसी ही कोई नई योजना लाने की तैयारी में है। यानी सभी की नज़र ‘रैतु बंधु' योजना पर है। इसी के चलते केसीआर हर मौक़े पर यह दावा करने से नहीं चूक रहे हैं कि ‘रैतु बंधु' योजना दुनिया-भर में अपने क़िस्म की अकेली योजना है और इससे न सिर्फ़ किसानों की आत्महत्याओं की घटनाएँ बंद होंगी बल्कि कृषि उत्पाद भी बढ़ेगा।
जानकारों के अनुसार, अगर देश भर में ‘रैतु बंधु' योजना लागू की गई तो केंद्र सरकार पर क़रीब-क़रीब ढाई से तीन लाख करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। इन सब के बीच यह तय है कि कोई भी पार्टी अब किसानों की माँगों को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकती है। किसानों का नज़रअंदाज़ करने का सीधा मतलब है कि चुनाव में हार।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें