क्या सैयद हैदर रज़ा जैसे चित्रकार की जिंदगी पर कोई ऐसी दास्तान तैयार की जा सकती है जिसे सुनते हुए पर्याप्त रस मिले या जिससे श्रोता बंधे रहें? यह सवाल शायद कवि-आलोचक और रज़ा फ़ाउंडेशन के निदेशक अशोक वाजपेयी के भीतर भी रहा होगा जब उन्होंने जाने-माने दास्तानगो महमूद फ़ारूक़ी को यह दास्तान तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। आख़िर एक चित्रकार का जीवन इतना नाटकीय या घटनापूर्ण नहीं होता कि उसे दो घंटे तक सुनने में लोगों की दिलचस्पी बनी रहे।
मंडला में रज़ा की दास्तान
- विविध
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- 30 Nov, 2022

प्रसिद्ध कलाकार सैयद हैदर रज़ा को कैसे याद किया जाएगा? क्या आपको पता है कि एक छोटे से गाँव से आने वाले रज़ा ने अंतरराष्ट्रीय कला जगत में एक लंबी यात्रा की!
लेकिन कुछ अरसा पहले दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में और फिर इस शनिवार को मंडला के एक प्रेक्षागृह में जब महमूद फ़ारूक़ी ने यह दास्तान पेश की तो लोग बिल्कुल बंधे के बंधे रह गए। क़रीब डेढ़ घंटे से ऊपर चली इस दास्तान के दौरान बीच-बीच में वाह-वाह के रूप में भरी जाने वाली हुंकारियों के अलावा लगभग सन्नाटा बना रहा- जैसे पूरा प्रेक्षागृह किसी जादू से बंधा हो। कार्यक्रम से पहले और संभवतः बाद भी अशोक वाजपेयी ने माना कि यह सैयद हैदर रज़ा को दी गई सर्वश्रेष्ठ श्रद्धांजलियों में से एक है।