मध्यकाल के लगातार विवादास्पद बनाए जा रहे इतिहास के बीच असग़र वजाहत का नाटक 'महाबली' अपनी तरह का एक हस्तक्षेप है जिसका मंचन पिछले दिनों जाने-माने रंग-निर्देशक एमके रैना ने श्रीराम सेंटर में सेंटर के ही समारोह की पहली प्रस्तुति के तौर पर किया।
इस तुलसीदास को देखना ज़रूरी है!
- साहित्य
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- 28 Dec, 2022

प्रतीकात्मक तसवीर।
सवाल है कि तुलसीदास को इतने विरोध और प्रतिरोध के बावजूद वह कौन सी चीज़ है जो उन्हें बचाए रखती है? वह कौन सी ताक़त है जो उनके पांव उखड़ने नहीं देती?
नाटक में दो महाबली हैं- एक तुलसीदास और दूसरे अकबर। यहीं से नाटक के विवादास्पद होने का ख़तरा शुरू हो जाता है। भारत में प्रगतिशील वैचारिकी की एक परंपरा तुलसीदास को कुछ हेय दृष्टि से देखती है और परंपरावादी मानती है। जबकि भारत की हिंदूवादी वैचारिकी की परियोजना को अकबर की महानता मंज़ूर नहीं है। उसे यह स्वीकार नहीं होगा कि अकबर तत्कालीन हिंदू पंडितों के मुक़ाबले ज़्यादा उदार, सभ्य और सांस्कृतिक समझ वाला शासक नज़र आए।
फिर यह नाटक एक मुसलिम लेखक का है (यह दुर्भाग्य ही है कि असग़र वजाहत को मुसलमान की तरह चिह्नित किया जाए, लेकिन मौजूदा सोच का रंग इतना बदला हुआ है कि वह इस पहलू को नज़रअंदाज़ कर ही नहीं सकती, इसलिए इसके सकर्मक इस्तेमाल की कोशिश करनी होगी)।