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मनुष्य देवताओं को अपनी शक्ल में गढ़ता है। इसीलिए जैसे हम हैं, हमारे देवता भी वैसे ही दीखते हैं। अगर मनुष्य की शक्ल घोड़े की तरह होती तो उसके देवताओं की सूरत भी वैसी होतीं।
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