“मेरी नीति साधारण स्तर की है जबकि स्थितियाँ असाधारण हैं।” नीतिज्ञ माने जानेवाले विदुर अपनी सीमा स्वीकार करते हैं। वे विदुर धर्मवीर भारती के ‘अंधा युग’ के पात्र हैं। इसी तरह कहा जा सकता है कि घटनाओं का वर्णन और उनकी व्याख्या के हमारे साधन और उपकरण नितांत अपर्याप्त हो चुके हैं या नाकारा हैं क्योंकि जो दीखता है, उससे कहीं अधिक वह है जो नहीं दीखता। इस सरकार के समर्थक भी अचंभित हैं कि उस जन रोष की विराटता को देखते हुए भी जो किसान आन्दोलन की शक्ल में भारत के अलग अलग हिस्सों में उमड़-घुमड़ रहा है, क्यों सरकार उसके दमन पर आमादा है!