क्या कोई अध्यापक विद्यार्थियों को यह कह सकता है कि किसे वोट दिया जाए, किसे नहीं? क्या वह कक्षा में निजी राय व्यक्त कर सकता है, ख़ासकर राजनीतिक राय? इन प्रश्नों पर लोगों की अलग अलग राय है। लेकिन उसके पहले हम यह ध्यान रखें कि जिस समय हम यह सवाल कर रहे हैं वह भारत में अध्यापकों पर हमलों, उनकी गिरफ़्तारी, उनको इस्तीफ़ा देने को मजबूर करने या निकाल देने का समय है। यह विश्वविद्यालयों में हो रहा है और दूसरे शैक्षणिक संस्थानों में भी।
अगर राजनीति देश को अस्तव्यस्त कर रही हो तो अध्यापक क्या करे?
- वक़्त-बेवक़्त
- |
- |
- 29 Mar, 2025

करण सांगवान (बाएं) और सब्यसाची दासः बुलंद आवाज
अल्पसंख्यकों की तरह टीचरों के लिए भी यह समय बुरा है। अघोषित आपातकाल का सामना उन्हें सबसे ज्यादा करना पड़ रहा है। किसी टीचर को सिर्फ इस बात पर किसी संस्था से हटा दिया जाए कि वो अपने छात्रों को सचेत करने का काम पूरी ईमानदारी से कर रहा था। किसी टीचर को इसलिए हटा दिया जाए कि वो अपने शोध पत्र में चुनाव की हकीकत पर टिप्पणी कर रहा था। चिंतक और पेशे से टीचर अपूर्वानंद की यह झकझोरती हुई टिप्पणी पढ़ेंः