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मोदी से बग़ावत या चुनाव पूर्व पोजिशनिंग कर रहे हैं गडकरी?

तीन राज्यों में हारने के बाद गडकरी ने कहा था कि जीत के तो ढेरों बाप होते है पर हार अनाथ होती है और इसके लिए नेतृत्व को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। गडकरी यहीं नहीं रुके। वे बोले कि लीडरशिप का संगठन के प्रति भरोसा तभी साबित होगा जब वह हार की भी ज़िम्मेदारी लेग। क्या वे मोदी और अमित शाह पर निशाना लगा रहे थे?
आशुतोष

बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी क्या बग़ावत पर उतारू हैं? क्या वह 2019 के लोकसभा चुनावों के लिये अभी से अपनी पोजीशनिंग कर रहे हैं? क्या वह अपने को मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं? ये सवाल आज काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं। आज कल वह पार्टी लाइन या मोदी अमित शाह लाइन के ख़िलाफ़ ख़ूब बोल रहे हैं। ऐसे समय में जब कि मोदी और उनके क़रीबी मंत्री नेता जम कर जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की लानत-मलानत कर रहे हैं, नितिन उनकी तारीफ़ में क़सीदे पढ़ रहे हैं। अब नागपुर के एक कार्यक्रम में नितिन ने बोला है कि इंदिरा गांधी महिला सशक्तीकरण की प्रतीक हैं। इंदिरा की तारीफ़

गडकरी ने कहा कि वह जाति और आरक्षण की राजनीति में विश्वास नहीं करते हैं । उन्होने कहा, 'इस देश में इंदिरा गांधी जैसी नेता भी हुई हैं, जो अपने समय के पुरूष दिग्गजों से बेहतर थी। क्या वह आरक्षण से आगे बढ़ी थीं?' गडकरी इंदिरा गांधी की तारीफ़ कर रहे हैं और उन्हीं के वरिष्ठ साथी अरुण जेटली इंदिरा गांधी को तानाशाह बता रहे हैं । मोदी का इंटरव्यू करने वाली पत्रकार को राहुल गांधी ने जब 'प्लाइबल जर्नलिस्ट' बताया तो जेटली ने कहा, 'इमरजेंसी की तानाशाह के पोते ने अपना असली डीएनए दिखा दिया।' इमरजेंसी इंदिरा गांधी ने लगाई थी। उन्हें बीजेपी वाले पानी पी-पी कर गालियाँ देते हैं। पिछले दिनों इंदिरा गांधी को जेटली ने 'हिटलर' के नाम से पुकारा था। ऐसे में गडकरी क्यों इंदिरा की प्रशंसा कर रहे हैं? 

राजनीति में कुछ भी अकारण नहीं होता। वह भी तब, जब पार्टी की कमान मोदी जैसे एकाधिकारवादी नेता के हाथ में हो। मोदी को यह बिलकुल पसंद नहीं है कि कोई उनकी लाइन से अलग जाए। गडकरी पार्टी के काफ़ी वरिष्ठ नेता हैं। पार्टी के अध्यक्ष रह चुके हैं। कैबिनेट में काफ़ी रुतबा है। इधर वे काफ़ी कुछ बोल रहे हैं ।

नेतृत्व की ज़िम्मेदारी

तीन राज्यों में हारने के बाद गडकरी ने कहा था कि जीत के तो ढेरों बाप होते है पर हार अनाथ होती है और इसके लिए नेतृत्व को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। गडकरी यहीं नहीं रुके। वह बोले कि लीडरशिप का संगठन के प्रति भरोसा तभी साबित होगा जब वह हार की भी ज़िम्मेदारी लेग। क्या वे मोदी और अमित शाह पर निशाना लगा रहे थे? मोदी को हर जीत का क्रेडिट दिया जाता है। उन्होने बाद में इस बात का खंडन किया कि वे किसी को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है। पर कुछ ही दिन के बाद वह फिर बोल पडे़ कि अगर सांसद और विधायक काम नहीं कर रहे हैं तो पार्टी अध्यक्ष को ही बोला जाएगा।

गडकरी ने तब यह भी कहा था, 'चुनाव जीतना आवश्यक है पर अगर सामाजिक आर्थिक बदलाव न हों, देश और समाज तरक़्क़ी न करे तो चुनाव जीतने का कोई मतलब नहीं है।' यहाँ यह बताना  ज़रूरी है कि पिछले कुछ महीनों से यह कहा जा रहा है कि मोदी सरकार के समय देश की आर्थिक हालत बिगड़ी है। क्या वह मोदी को नसीहत दे रहे थे? सब को मालूम है कि मोदी नेहरू की तीखी आलोचना का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ते। पर गडकरी ने इसी भाषण में कहा 'मैं नेहरू को पसंद करता हूँ । वह कहते थे कि भारत एक देश नहीं, जनसंख्या है।' 

Gadkari revolting against Modi or positioning himself before 2019 polls - Satya Hindi

मोदी से नाराज़

तीन राज्यों में चुनाव के बाद बीजेपी के अंदर से यह आवाज़ उठी कि गडकरी को नेतृत्व सौंप देना चाहिए। महाराष्ट्र के बडे़ किसान नेता किशोर तिवारी और बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष संघप्रिय गौतम इस बाबत बात कर चुके हैं। ख़बर यह भी है कि आरएसएस मोदी सरकार के प्रदर्शन से खुश नहीं है। ख़ासतौर पर राममंदिर पर मोदी सरकार की हीला-हवाली से वो नाराज़ है। उसे यह भी लगता है कि मोदी सिर्फ़ अपनी निजी प्रतिष्ठा बढ़ाने में लगे हैं। 

आरएसएस को लगता है कि मोदी की एकमात्र चिंता है कि वह कैसे फिर प्रधानमंत्री बनें। वह संगठन की परवाह नहीं करते और किसी को पनपने नहीं देते। उन्होंने और अमित शाह ने सरकार और संगठन पर पूरी तरह से कब्ज़ा कर लिया है। ऐसे में अगर मोदी चुनाव नहीं जिता सकते तो फिर उनकी ज़रूरत क्या है?
गडकरी आरएसएस के काफ़ी क़रीबी माने जाते हैं। वह संघ की कृपा से ही 2009 में पार्टी अध्यक्ष बने थे। फिर वह एकमात्र मंत्री है जिनके काम की तारीफ़ उनके विरोधी भी करते हैं। उनकी अगुआई में हाई वे का काम काफ़ी बेहतर हुआ है। वह अक़ेले मंत्री हैं जो प्रधानमंत्री से अलग राय कैबिनेट में रखते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या वह भविष्य की राजनीति के लिए पोजीशनिंग कर रहे हैं? 2019 में इस बात की संभावना काफ़ी कम है कि मोदी को बहुमत मिले। त्रिशंकु लोकसभा होने की पूरी संभावना है। मोदी के बारे में मशहूर है कि वह किसी की नहीं सुनते, सारे गठबंधन के सहयोगी उनसे नाराज़ रहते हैं। ऐसे में अगर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों की ज़रूरत होगी तो मोदी की जगह वह किसी ऐसे नेता को पीएम के तौर पर पसंद करेंगे जो सबको साथ लेकर चल सके, सबकी बात सुने, तमीज़ से बात करे, न कि सिर्फ़ सबका साथ, सबका विकास का नारा दे, इसपर अमल न करे। संघ को भी ऐसा ही नेता पसंद आएगा। गडकरी उसकी पहली पसंद होंगे । 
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