नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने तीसरे कार्यकाल में भी लैटरल एंट्री को जारी रखते हुए 24 मंत्रालयों के 45 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया है। उप सचिव, संयुक्त सचिव और निदेशक जैसे उच्च पदों पर होने वाली नियुक्तियों में कोई आरक्षण नहीं दिया गया है। गौरतलब है कि इन पदों पर बैठे हुए अधिकारी ही नीतियां बनाते हैं। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने लैटरल एंट्री के जरिये होने वाली इन नियुक्तियों के विज्ञापन पर जोरदार हमला बोला है। उनका कहना है कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित लोगों की जगह पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और कॉरपोरेट घरानों से उच्च पदों पर नियुक्तियां की जा रही हैं। इनमें दलित, आदिवासी और पिछड़ों के लिए आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। आरक्षित वर्ग के अधिकारी पहले से ही कम हैं। लैटरल एंट्री के जरिये उनकी भागीदारी खत्म करने की सुनियोजित साजिश की जा रही है। नीति निर्धारक पदों पर एक खास विचारधारा और वर्ग से होने वाली इन नियुक्तियों के जरिये संविधान को बदला जा रहा है।
लैटरल एंट्री यानी देश में संविधान नहीं, मनुस्मृति का विधान, जानिए कैसे
- विश्लेषण
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- 29 Mar, 2025

सरकार में उच्चस्तर पर सरकारी नीतियां बनाने वाली नौकरशाही में लैटरल एंट्री 2018 से ही मोदी सरकार ला चुकी है। अंडर सेक्रेटरी, ज्वाइंट सेक्रेटरी स्तर के ये अधिकारी सारे निर्णय लेते हैं। मोदी सरकार ने अब 45 पदों के लिए फिर से लैटरल एंट्री का विज्ञापन दिया है। 57 अधिकारी लैटरल एंट्री के जरिए पहले से ही काम कर रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार ये सब क्यों कर रही है। राजनीतिक विश्लेषक रविकान्त का विश्लेषणः
लेखक सामाजिक-राजनीतिक विश्लेषक हैं और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में असि. प्रोफ़ेसर हैं।