किसी भी संकट की स्थिति में व्यक्ति-विशेष की विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ होती हैं। कुछ व्यक्तियों की प्रतिक्रियाएँ तुरंत ही आनी शुरू हो जाती हैं, तो कुछ लोगों में यह देर से। प्रतिक्रियाएँ भी अलग-अलग रूप में आती हैं। यदि संक्रामक महामारी की स्थिति हो तो उस समय व्यक्तियों में यह भय उत्पन्न हो जाता है कि कहीं उन्हें या उनके परिवार के सदस्यों में यह संक्रमण न हो जाए।
कोरोना ने कैसे बदल दी हमारी मानसिकता, आख़िर हर चीज से डर या आशंका क्यों?
- स्वास्थ्य
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- 24 Apr, 2020

किसी भी संकट की स्थिति में व्यक्ति-विशेष की विशिष्ट प्रतिक्रियाएँ होती हैं। यदि संक्रामक महामारी की स्थिति हो तो उस समय व्यक्तियों में यह भय उत्पन्न हो जाता है कि कहीं उन्हें या उनके परिवार के सदस्यों में यह संक्रमण न हो जाए।
वर्तमान समय में ‘कोरोना’ संक्रमण से एक भय का वातावरण बना हुआ है। जब व्यक्ति लगातार इस प्रकार के संक्रमण के भय में रहता है तब एक तनाव की स्थिति बनी रहती है और वह कई तरह की सावधानियाँ बरतता है। जैसे अनावश्यक रूप से बाहर न जाना, किसी अपरिचित के संपर्क में न आना, स्वच्छता का अधिक ध्यान रखना इत्यादि। ऐसी स्थिति में जब व्यक्ति ख़ुद या उनके सम्बन्धी ज़रूरी काम के लिए घर से बाहर निकलते हैं, तब एक तनाव का वातावरण बन जाता है और वापस आने के बाद व्यक्ति के मस्तिष्क में एक भय व असमंजस की स्थिति बनी हुई होती है कि उसने/सम्बन्धी ने बाहर जाने के दौरान और वापस आने के बाद ज़रूरी और पर्याप्त सावधानियाँ बरती हैं कि नहीं।
सरबजीत कौर सरन दिल्ली विश्वविद्यालय के माता सुन्दरी कॉलेज में आचार्य (मनोविज्ञान विभाग) हैं।