समलैंगिक संबंधों को क़ानूनन वैध माने जाने के बाद अब समलैंगिक शादी के हक की लड़ाई की तैयारी की जा रही है। इसके लिए इसी महीने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका एक मनोचिकित्सक कविता अरोड़ा और एक मनोवैज्ञानिक अंकिता खन्ना ने तब दाखिल की जब पिछले महीने उनकी शादी के आवेदन को अधिकारियों ने खारिज कर दिया। वे इसे लैंगिक पसंद आधारित भेदभाव मानती हैं और कहती हैं कि अनुच्छेद 21 के तहत मिले शादी के साथी चुनने के अधिकार का उल्लंघन है। इसी आधार पर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। ऐसी ही एक याचिका एक अन्य जोड़ा भी दाखिल कर रहा है। तो क्या इसके लिए लंबी लड़ाई की तैयारी है? लंबी लड़ाई इसलिए कि समलैंगिक अधिकारों के लिए दुनिया भर में लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी है। बिल्कुल उसी तरह से जिस तरह से भारत में समलैंगिक संबंधों को ग़ैर-क़ानूनी बताने वाली धारा 377 के ख़िलाफ़ लड़ी गई थी। तो क्या दुनिया के कई देशों की तरह ही भारत में भी समलैंगिक शादी को मंजूरी दी जा सकती है?