क्या बोलने की आज़ादी वहीं तक सीमित है जहाँ तक सरकार की आलोचना नहीं हो? यह सवाल एक बार फिर तब उठने लगा जब मंझे फ़िल्म निर्माता और अभिनेता अमोल पालेकर को मुंबई के एक कार्यक्रम में बोलने से बार-बार रोकने की कोशिश की गयी। इस पर उनको यहाँ तक कहना पड़ा कि क्या उनके बोलने पर सेंसरशिप लगायी जा रही है। अमोल पालेकर उस कार्यक्रम में पहले से तैयार भाषण लेकर गए थे, लेकिन अफ़सरों की आपत्ति के कारण आख़िरकार उनको भाषण अधूरा छोड़कर बैठना पड़ा। इस घटना के बाद उन्होंने कहा कि वह इस पर चुप नहीं रहेंगे।
सरकार की आलोचना पर अमोल पालेकर को बोलने से रोका गया
- महाराष्ट्र
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- 10 Feb, 2019
फ़िल्म निर्माता और अभिनेता अमोल पालेकर को मुंबई के एक कार्यक्रम में बोलने से बार-बार रोकने की कोशिश की गयी।

ऐसी स्थिति तब आई जब अमोल पालेकर नेशनल गैलरी ऑफ़ मॉडर्न आर्ट (एनजीएमए) की आर्टिस्ट एडवाइज़री कमेटी को लेकर बोल रहे थे। उनको बोलने से तब रोकने की बार-बार कोशिश की गई जब वह एनजीएमए के मुंबई और बेंगलुरु केंद्रों की एडवाइजरी कमेटी को कथित रूप से ख़त्म करने के लिए संस्कृति मंत्रालय की आलोचना कर रहे थे। इस एडवाइजरी कमेटी में स्थानीय कलाकारों की भागीदारी होती है।
अमोल पालेकर ने कहा, ‘कलाकारों की अभिव्यक्ति और कला की विविधता को दिखाने वाले मंच एनजीएमए पर हाल ही किसी का नियंत्रण हो गया है। यह इस ‘वार अगैंस्ट ह्यूमैनिटीज़’ का सबसे ताज़ा शिकार है। मैं सच में परेशान हूँ। इससे भी ज़्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि इस रहस्य को जानने वाले लोगों ने इस एकतरफ़ा आदेश के ख़िलाफ़ न तो आवाज़ उठायी और न ही विरोध किया। उन्होंने इस पर सवाल भी नहीं किया।’