क्या बोलने की आज़ादी वहीं तक सीमित है जहाँ तक सरकार की आलोचना नहीं हो? यह सवाल एक बार फिर तब उठने लगा जब मंझे फ़िल्म निर्माता और अभिनेता अमोल पालेकर को मुंबई के एक कार्यक्रम में बोलने से बार-बार रोकने की कोशिश की गयी। इस पर उनको यहाँ तक कहना पड़ा कि क्या उनके बोलने पर सेंसरशिप लगायी जा रही है। अमोल पालेकर उस कार्यक्रम में पहले से तैयार भाषण लेकर गए थे, लेकिन अफ़सरों की आपत्ति के कारण आख़िरकार उनको भाषण अधूरा छोड़कर बैठना पड़ा। इस घटना के बाद उन्होंने कहा कि वह इस पर चुप नहीं रहेंगे।