इरफ़ान ख़ान की मृत्यु एक आकस्मिक ट्रेजडी की तरह ज़रूर है लेकिन सचाई यह भी है कि ख़ुद इरफ़ान को, उनके परिवार को और उनके प्रशंसकों को इसके आने की आशंका थी। कह सकते हैं कि पिछले डेढ़-दो साल (2018) से इरफ़ान एक ख़ास तरह के कैंसर की वजह से मृत्यु के साथ आँख मिचौली खेल रहे थे। कुछ समय तक उन्होंने उसे छकाया और छकाते- छकाते `अंग्रेज़ी मीडियम’ फ़िल्म भी कर डाली। लेकिन मृत्यु को हमेशा के लिए छकाया भी नहीं जा सकता है। छकते छकते अचानक ही घेर लेती है। इसी वजह से हिंदी फ़िल्म उद्योग के इस चहेते कलाकार ने आख़िरकार सबको टाटा–बायबाय कर दिया।
हॉलीवुड स्टार बनने के बाद भी रात भर खुले में चबूतरे पर क्यों सोए थे इरफ़ान ख़ान?
- श्रद्धांजलि
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- 30 Apr, 2020


इरफ़ान को बतौर अभिनेता भारत में भी प्रतिष्ठा मिली और अंतरराष्ट्रीय मंच पर यानी अंग्रेज़ी फ़िल्मों में भी। इस तरह उन्होंने अंग्रेज़ी भाषा रूपी उस दीवार को भी लांघा जो भारतीयों के एक बड़े वर्ग को चीन की दीवार की तरह दुर्लंघ्य लगती है। देसी मुहावरे में कहें तो इरफ़ान मूलत: हिंदी मीडियम वाले थे। जयपुर के अतिसाधारण आर्थिक पृष्ठभूमि ने जन्म लेनेवाले इस शख्स में अभी कई और संभावनाएँ बची थीं।
मेरे लिए, और कइयों के लिए दो इरफ़ान ख़ान हैं। एक हैं फ़िल्मों के बड़े अभिनेता- `स्लमडॉग मिलियनेयर’, `जुरासिक वर्ल्ड’, `लाइफ़ ऑफ़ पाई’, `मक़बूल’, `हैदर’, `पान सिंह तोमर’, `लंचबॉक्स’, `हिंदी मीडियम’, `अंग्रेज़ी मीडियम’ जैसी फ़िल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए सराहे जानेवाले इरफ़ान ख़ान। दूसरे हैं रंगमंच के इरफ़ान, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातक और लगभग तीसेक साल पहले हिंदी रंगमंच पर कई शानदार भूमिकाओं के लिए चिरस्मरणीय़। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय अपने जिन स्नातकों पर गर्व कर सकता है उनमें इरफ़ान भी हैं।



























