गृहमंत्री अमित शाह ने विपक्ष की ओर से बार-बार डॉ. आंबेडकर का नाम लिए जाने को जिस तरह ‘फ़ैशन’ बताया है, उसने संघ (आरएसएस) शिविर में लंबे समय से पल रही एक ग्रंथि को सामने ला दिया है। ऐसे वक़्त जब ‘हिंदू राष्ट्र’ की हाँक लगाते तमाम बाबा और कथावाचक यात्राएँ निकाल रहे हैं और 2025 के महाकुम्भ में ‘हिंदू राष्ट्र’ के ऐलान की तैयारियाँ ज़ोरों पर हैं, संसद से सड़क तक डॉ. आंबेडकर के विचारों पर बहस तेज़ हो गयी है जिन्होंने हिंदू राष्ट्र को ‘लोकतंत्र के लिए विपत्ति बताया था।’ यह स्थिति संघ के सपनों पर कुठाराघात की तरह है जो अगले साल अपनी स्थापना का शताब्दी समारोह मनाने जा रहा है।
फ़ैशन न भगवान, संघ का डर हैं आंबेडकर!
- विचार
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- 19 Dec, 2024

अमित शाह का भाषण उसी झुँझलाहट का नतीजा है जो डॉ. आंबेडकर के विचारों के प्रति बढ़ती ललक के कारण संघ शिविर में पसरी हुई है। अमित शाह के इस भाषण से यह ललक और बढ़ेगी।
गृहमंत्री अमित शाह का यह बयान इसी चिड़चिड़ाहट की उपज है। मंगलवार को राज्यसभा में उन्होंने कहा- “अभी एक फैशन हो गया है– आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर, आंबेडकर... इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता।” अमित शाह का यह बयान बताता है कि भगवान का बार-बार नाम लेने से स्वर्ग मिलता है और निश्चित है आंबेडकर भगवान नहीं हैं। लेकिन अमित शाह को पता होना चाहिए कि डॉ. आंबेडकर का नाम लेना फ़ैशन नहीं जिन्होंने वह संविधान लिखा जो देश के दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और स्त्रियों के ऐतिहासिक भाग्योदय का कारण बना। इसलिए इन वर्गों के लिए वह किसी भगवान से बढ़कर हैं। इस ‘समतावादी' संविधान की वजह से उन्हें स्वर्ग तो नहीं मिला, लेकिन धरती पर मौजूद सामाजिक असमानता के नर्क से निकलने का रास्ता ज़रूर मिल गया। वैसे भी अमित शाह जिस स्वर्ग की बात कर रहे थे उसके लिए मरना ज़रूरी है जबकि आंबेडकर का मक़सद उनकी ज़िंदगी को मानवीय-गरिमा से भरना था। अमित शाह जिस भगवान की ओर इशारा कर रहे हैं उसने तो हज़ारों साल तक नाम जपने के बाद इन शोषित वर्गों का उद्धार नहीं किया।