29 नवंबर 1948 को संविधान सभा में अनुच्छेद-17 (ड्राफ्ट अनुच्छेद-11) पर बहस शुरू हुई। इसमें अस्पृश्यता को खत्म करने पर बात की गई थी। पूरी संविधान सभा ने एक स्वर में इस अनुच्छेद का समर्थन किया। संविधान सभा ने और बाद में 1950 में लागू हुए पूर्ण संविधान में अनुच्छेद-17 के हवाले से घोषणा की गई कि- "अस्पृश्यता" को समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसका अभ्यास निषिद्ध है। "अस्पृश्यता" से उत्पन्न किसी भी किस्म की अपात्रता को लागू करना कानून के अनुसार दंडनीय अपराध होगा। लेकिन संविधान सभा में कुछ सदस्य ऐसे भी थे जो इस अनुच्छेद में संशोधन करना चाहते थे। इनमें से एक थे, पश्चिम बंगाल से संविधान सभा के सदस्य, नजीरउद्दीन अहमद। उन्होंने सभा के सामने इस अनुच्छेद में संशोधन करके कुछ इस रूप में पेश किया- किसी को भी उसके धर्म या जाति के आधार पर 'अछूत' नहीं माना जाएगा; और किसी भी रूप में इसका पालन कानून द्वारा दंडनीय बनाया जा सकता है।''