बीसवीं सदी में जब मंदिर प्रवेश-निषेध कर दलित समाज के प्रति हो रहे ज़ुल्म और तिरस्कार के सवाल पर डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर से पूछा गया कि दलित समाज के लोगों को मंदिर में दाख़िला नहीं मिलता, जबकि उनका दान ले लिया जाता है, ऐसे में दलितों के साथ नाइंसाफी होती है। इसके जवाब में अम्बेडकर ने कहा था कि हिन्दू समाज अपने ही समाज के एक बड़े वर्ग के साथ पूजा उपासना में जो जातिगत भेदभाव करता है, ये उसका नैतिक पतन और संकट है।
5 अगस्त: तमाम हमलों के बाद भी मुसलिमों ने बदले की बात नहीं की!
- विचार
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- 8 Aug, 2020

पड़ोस के मुसलिम मुल्कों के लिए भारत एक मिसाल था कि बहुसंस्कृतियां कैसे मिलजुल कर जी सकती हैं। अब उस सौम्य, आधुनिक छवि से पीछा छुड़ा चुकने के बाद प्रवासियों को भी चिंता होने लगी है क्योंकि कनाडा, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कुवैत, अमेरिका में रह रहे प्रवासियों पर
आधिकारिक तौर पर भारत में चल रहे मुसलिम-विरोधी घटनाक्रम की आंच पड़ने लगी है।
अम्बेडकर ने कहा था, ‘मेरा ध्येय दलितों को मंदिर के अंदर पहुंचाना नहीं है, बल्कि मेरा लक्ष्य है कि मेरे समाज के लोग स्कूल, यूनिवर्सिटी और तंत्र के संस्थानों में पहुंचें। गैर बराबरी, नाइंसाफी, ज़ुल्म और तिरस्कार जिनका आचरण है वो खुद अपने नैतिक उत्थान के लिए अपने अंदर सुधार लाएं और खुद को एक मानवतावादी, आदर्श समाज साबित करें।’
लेखिका भारत सरकार के मॉडर्नाइजेशन ऑफ़ मदरसा एजुकेशन प्रोग्राम 2000 से को-ऑर्डिनेटर के तौर पर औपचारिक रूप से जुड़ी रही हैं और इस विषय पर उन्होंने लगातार लिख-बोल कर मुहिम चलाई है।