बीसवीं सदी में जब मंदिर प्रवेश-निषेध कर दलित समाज के प्रति हो रहे ज़ुल्म और तिरस्कार के सवाल पर डॉक्टर भीमराव अम्बेडकर से पूछा गया कि दलित समाज के लोगों को मंदिर में दाख़िला नहीं मिलता, जबकि उनका दान ले लिया जाता है, ऐसे में दलितों के साथ नाइंसाफी होती है। इसके जवाब में अम्बेडकर ने कहा था कि हिन्दू समाज अपने ही समाज के एक बड़े वर्ग के साथ पूजा उपासना में जो जातिगत भेदभाव करता है, ये उसका नैतिक पतन और संकट है।