पिछले एक पखवाड़े के भीतर देश के अनेक राज्यों से साम्प्रदायिक हिंसा की वारदातों के अफ़सोसनाक समाचार सुनने को मिले। निश्चित रूप से दुनिया का कोई भी सभ्य समाज हिंसा, लूट, बस्ती में आगज़नी करने, हत्या, पत्थरबाज़ी, गोलीबारी, किसी समुदाय के धर्मस्थल पर किसी अन्य समुदाय से संबंधित ध्वज फहराने, लाऊडस्पीकर पर समुदाय विशेष को गलियां देने, उन्हें धमकाने और दहशत फैलाने आदि दुष्कृत्यों को सही या जायज़ नहीं ठहरा सकता।
जहाँ धर्म वहीं प्रेम, जहाँ हिंसा वहां पाखंड
- विचार
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- 29 Mar, 2025

रामनवमी के दौरान कई जगहों पर हुई हिंसा के साथ ही सांप्रदायिक सौहार्द्र, प्रेम, भाईचारे के उदाहरण भी देखने को मिले जिसमें हिंदू और मुसलमान एक साथ खड़े दिखाई दिए।
और यदि कोई वर्ग ऐसा है जिसे इस तरह के दो समुदायों को विभाजित करने वाले हालात पर गर्व अथवा ख़ुशी है या उसे इन हालात से किसी तरह का लाभ मिलता है तो निःसंदेह वह वर्ग न केवल असभ्य है बल्कि वह देश और मानवता का दुश्मन भी है चाहे वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय का क्यों न हो।
चूँकि सत्ता के नुमाइंदे प्रायः देश के लोगों को यह सलाह देते हैं कि उन्हें 'आपदा में भी अवसर' की तलाश करनी चाहिए और मंहगाई या बेरोज़गारी पर हाय तौबा करने के बजाये अपनी सोच नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक रखनी चाहिये। इसीलिये बावजूद इसके कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में रामनवमी के जुलूसों के दौरान हिंसक वारदातों की जितनी ख़बरें इसबार सुनने को मिलीं, पहले कभी नहीं सुनी गयीं।