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जहाँ धर्म वहीं प्रेम, जहाँ हिंसा वहां पाखंड

पिछले एक पखवाड़े के भीतर देश के अनेक राज्यों से साम्प्रदायिक हिंसा की वारदातों के अफ़सोसनाक समाचार सुनने को मिले। निश्चित रूप से दुनिया का कोई भी सभ्य समाज हिंसा, लूट, बस्ती में आगज़नी करने, हत्या, पत्थरबाज़ी, गोलीबारी, किसी समुदाय के धर्मस्थल पर किसी अन्य समुदाय से संबंधित ध्वज फहराने, लाऊडस्पीकर पर समुदाय विशेष को गलियां देने, उन्हें धमकाने और दहशत फैलाने आदि दुष्कृत्यों को सही या जायज़ नहीं ठहरा सकता।

और यदि कोई वर्ग ऐसा है जिसे इस तरह के दो समुदायों को विभाजित करने वाले हालात पर गर्व अथवा ख़ुशी है या उसे इन हालात से किसी तरह का लाभ मिलता है तो निःसंदेह वह वर्ग  न केवल असभ्य है बल्कि वह देश और मानवता का दुश्मन भी है चाहे वह किसी भी धर्म अथवा समुदाय का क्यों न हो। 

                                              

चूँकि सत्ता के नुमाइंदे प्रायः देश के लोगों को यह सलाह देते हैं कि उन्हें 'आपदा में भी अवसर' की तलाश करनी चाहिए और मंहगाई या बेरोज़गारी पर हाय  तौबा करने के बजाये अपनी सोच नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक रखनी चाहिये। इसीलिये बावजूद इसके कि स्वतंत्र भारत के इतिहास में रामनवमी के जुलूसों के दौरान हिंसक वारदातों की जितनी ख़बरें इसबार सुनने को मिलीं, पहले कभी नहीं सुनी गयीं।

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परन्तु इन साम्प्रदायिक हिंसक वारदातों के ठीक विपरीत इसी राम नवमी में देश के अनेक भागों से साम्प्रदायिक सद्भाव की भी अनेक अनूठी ख़बरें सुनाई दीं हैं। यह और बात है कि गोदी मीडिया को हिंसा व आगज़नी की चपेट में आई इंसानी बस्तियों में उठती आग की लपटें और हवा में तलवारें लहराते और दहशत फैलाने वाले धार्मिक उद्घोष व चीख़ पुकार आदि तो उनकी अपनी टी आर पी बढ़ाने के लिये दिखाई व सुनाई दिये। परन्तु देश को सद्भाव का सन्देश देने वाली ख़बरें नज़र नहीं आईं। 

बेशक देश का एक बहुत बड़ा अमनपसंद वर्ग इस समय देश के सत्ता के संरक्षण से पैदा होने वाले विभाजनकारी व सामाजिक ध्रुवीकरण के हालात से अत्यंत निराश हो चुका है। परन्तु अभी भी इसी देश में रोज़ाना कहीं न कहीं से ऐसी ख़बरें सुनाई देती हैं जिनसे यह उम्मीद बंधती है कि देश पर छाये हिंसा व नफ़रत के काले बादल आज नहीं तो कल ज़रूर छंटेंगे।

रामनवमी के जुलूस का स्वागत                                    

उदाहरण तौर पर झारखण्ड की राजधानी रांची में बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रामनवमी के जुलूस का शानदार स्वागत किया। इस अवसर पर मुस्लिम भाइयों ने राम नवमी जुलूस में शामिल अपने हिन्दू भाइयों को मिठाई, गुड़, चना, फल आदि खिलाया और शीतल पेय भी पिलाया। इतना ही नहीं बल्कि  मुस्लिम समुदाय से संबंधित कई संस्थाओं के पदाधिकारियों ने शोभायात्रा से जुड़े विशिष्ट हिन्दू पदाधिकारियों को स्मृति चिन्ह भेंट किया तथा उन्हें पगड़ी बांध कर सम्मानित किया। 

प्राप्त समाचारों के अनुसार रांची की सेंट्रल मुहर्रम कमेटी, रांची पब्लिक स्कूल तथा इमाम बख़्श अखाड़ा सहित अनेक मुस्लिम संस्थाओं, मदरसों व स्कूलों ने जुलूस में शामिल लोगों का स्वागत किया। दोनों समुदाय के लोग एक-दूसरे से गले मिले एक दूसरे को मिठाइयां खिलाईं। ऐसा ही समाचार झारखण्ड के ही हज़ारीबाग़ से भी प्राप्त हुआ है। बताया जाता है कि हज़ारी बाग ज़िले की  रामनवमी की शोभा यात्रा अपनी भव्यता को लेकर पूरे देश में मशहूर है। । यहाँ की रामनवमी साम्प्रदायिक सौहार्द के लिये भी प्रसिद्ध है। हमेशा की तरह इस बार भी रामनवमी में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने बढ़ चढ़ कर इसमें अपनी सहभागिता दर्ज की। यहाँ भी रामभक्तों का मनोबल बढ़ाते हुये  मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उन्हें जगह-जगह पर सम्मानित किया।
Hate against muslims and ramnavmi communal clash - Satya Hindi

इतना ही नहीं बल्कि  हिन्दू भाइयों ने मुस्लिम समुदाय के लोगों के सर पर केसरिया पगड़ी बाँध उनसे गले मिलकर सौहार्द की मिसाल पेश की। इनमें अनेक मुसलमान तो स्वयं रोज़ा धारण किये होने के बावजूद रामनवमी के जुलूस में हर्षोल्लास से शरीक हुये और ख़ुद भूखे (रोज़ा ) रहकर भी अपने राम भक्त भाईयों को जलपान कराया। झारखण्ड के ही पलामू, मेराल, मेदिनीनगर व गढ़वा आदि जैसे कई स्थानों से भी ठीक इसी तरह के सदभावपूर्ण रामनवमी आयोजन के समाचार मिले हैं।   

                    

कुछ ऐसी ही 'सकारात्मकता' से परिपूर्ण ख़बरें उसी राजस्थान राज्य से आईं जहाँ के करौली क्षेत्र में कुछ दिनों पहले दंगाइयों ने उपद्रव व आगज़नी की घटनाओं को अंजाम दिया था।अब इसी राजस्थान के जयपुर, अजमेर व जैसलमेर जैसे प्रमुख शहरों में रामनवमी के जुलूस पर मुस्लिम समुदाय की ओर से फूल बरसाकर उनका स्वागत करने तथा मिठाइयां व शरबत आदि वितरित करने के समाचार प्राप्त हुये हैं।

देश के कई जगहों से जहाँ ऐसे समाचार पहले भी आये और इस बार की रामनवमी के अवसर पर भी सुने गये कि मस्जिद पर कुछ धर्म विरोधी असामाजिक तत्वों द्वारा जबरन भगवा झंडा लहराया गया।
वहीं केंद्र शासित प्रदेश दमन दीव से मिलने वाली ख़बर शांति के पक्षधर भारतवासियों में बेशक "सकारात्मकता " का संचार करती है।
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दमन दीव के खारीवाड़-मिटनावड़ में स्थित राम मंदिर के शिखर पर मुस्लिम समाज के समाजसेवी शौकत मिठाणी ने भगवा ध्वज अपने हाथों से स्थापित किया। और रामनवमी के जुलूस में भगवान राम की पालकी अपने कन्धों पर उठाकर प्रेम, सद्भाव व भाईचारे का सुबूत पेश किया। बताया जाता है कि यह राम मंदिर शौकत मिठानी ने अपने पैसों से बनवाकर स्थानीय हिन्दू समाज को भेंट किया है। 

                     

अभी कुछ दिनों पूर्व ही बिहार राज्य के चंपारण से दुनिया का सबसे बड़ा विराट रामायण मंदिर बनाने की तैयारियों की ख़बर सामने आई थी। बिहार के एक मुस्लिम व्यक्ति ने राज्य के पूर्वी चंपारण ज़िले के कैथवलिया इलाक़े में बनने वाले इस मंदिर हेतु 2.5 करोड़ रुपये मूल्य की अपनी निजी ज़मीन दान में दी है। 

पटना के महावीर मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष आचार्य किशोर के अनुसार इश्तियाक़ अहमद ख़ान पूर्वी चंपारण के रहने वाले हैं तथा वर्तमान में गुवाहाटी में कारोबार कर रहे हैं।

इश्तियाक़ अहमद ख़ान ने ही 2.5 करोड़ रुपये की ज़मीन विराट रामायण मंदिर निर्माण हेतु दान की है। योजनानुसार यह विराट रामायण मंदिर विश्व के प्रसिद्ध 12 वीं सदी के अंगकोरवाट के मंदिर से भी विराट होगा तथा इसपर लगभग 500 करोड़ रुपये की लागत आएगी।

इसी बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर ज़िले के मुहम्मदपुर गांव में कुछ उपद्रवियों ने राम नवमी के दिन एक मस्जिद पर भगवा झंडा लहराकर अपनी भी  'सभ्यता ' का परिचय दिया था। कहना ग़लत नहीं होगा कि धर्म वहीं वहीं है जहां प्रेम व सद्भाव क़ायम है और जहाँ भी हिंसा वैमनस्य है वहां धर्म नहीं बल्कि अधर्म और पाखंड का ही साम्राज्य है। 

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निर्मल रानी
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