दुनिया आज जब कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है तब उसके पास मानवता की रक्षा के लिए जन-जन की सेवा करने वाला न कोई महात्मा गाँधी है और न ही कोई मदर टेरेसा। महामारी से संघर्ष के दौरान मनुष्य को साहस और सहारे की आवश्यकता होती है। यह साहस उन्हें उस विश्वसनीय नेतृत्व से मिल सकता है जो हमेशा मानव कल्याण को अपने निजी हितों से ऊपर रखता हो। भारत के पास महात्मा गाँधी द्वारा दक्षिण अफ़्रीका में संक्रामक महामारी का मुक़ाबला करने का समृद्ध अनुभव है।
‘फ्रंटलाइन वॉरियर’ बन गाँधी ने महामारी को हराया था; आज के नेता सबक़ लेंगे?
- विचार
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- 28 Apr, 2020

दुनिया आज जब कोविड-19 की महामारी से जूझ रही है तब उसके पास मानवता की रक्षा के लिए जन-जन की सेवा करने वाला न कोई महात्मा गाँधी है और न ही कोई मदर टेरेसा।
वह 1904 का साल था जब गाँधी वापस दक्षिण अफ़्रीका गए। तब तक गाँधी को दक्षिण अफ़्रीका में रहने वाले हिन्दुस्तानी साम्राज्यवाद और नस्लीय भेदभाव से मुक्ति का नेता स्वीकार कर चुके थे। उस समय दक्षिण अफ़्रीका में रहने वाले हिन्दुस्तानियों में हिंदू, मुसलमान और पारसी थे। गाँधी हमेशा ही जहाँ भी गए, सबसे पहले वहाँ के मज़दूरों से मिलते थे। यहाँ तक कि जब वह ब्रिटेन गए तो वहाँ भी मज़दूरों के दुःख-दर्द को सुना-समझा।
गाँधी जब दक्षिण अफ़्रीका पहुँचे तब वहाँ पर प्लेग महामारी फ़ैल गई थी। हिन्दुस्तानी मज़दूरों के तिरस्कार के लिए ब्रिटिश लोग ‘कुली’ शब्द का उपयोग करते थे और उनके रहने के इलाक़ों को ‘कुली लोकेशन’ कहते। मज़दूरों के उन इलाक़ों में साफ़-सफ़ाई के अभाव में गंदगी रहती थी लेकिन महामारी उस गंदगी से नहीं बल्कि एक सोने की खदान से फ़ैली थी।