यह 2015 का साल था जब नरेंद्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे और एमएम कलबुर्गी जैसे लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की हत्या से दुखी, इन घटनाओं पर साहित्य अकादमी की चुप्पी से नाराज़ और गोरक्षा के नाम पर शुरू हुई मॉब लिंचिंग की प्रवृत्ति के साथ-साथ उसको मिल रहे सरकारी संरक्षण से स्तब्ध लेखकों ने अपने प्रतिरोध के तौर पर अपने पुरस्कार वापस करने शुरू किए। शुरुआत उदय प्रकाश ने की, फिर नयनतारा सहगल और अशोक वाजपेयी ने पुरस्कार लौटाए और इसके बाद पुरस्कार वापस करने वालों का तांता लग गया। सरकार ने इसे अपनी किरकिरी की तरह देखा और तत्काल बीजेपी सरकार से जुड़े मंत्री और नेता ही नहीं, सरकार समर्थक लेखक-कलाकार भी इन लेखकों को ‘अवार्ड वापसी गैंग’ बताने लगे।