राजनीतिक दलों में क्या खिचड़ी पाक रही है, ये जानने से पहले ये तय किया जाना चाहिए की देश के सियासी दल सियासत कर रहे हैं या दुकानें खोलकर बैठे हैं ? सियासत तमाम लोकतान्त्रिक व्यवस्थाओं की एक जरूरत रही है । जहाँ लोकतंत्र नहीं है वहां सियासत की बजाय साजिश चलती है। लोकतंत्र में सियासत करने के लिए बाकायदा पंजीकृत दलों का गठन किया जाता है। कुछ अपंजीकृत राजनितिक दल भी होते हैं। सभी को सियासत करने की छूट है। सियासी दलों को मिली यही छूट कालांतर में लूट में बदल गयी। देवयोग से सियासत अब दुकानदारी में तब्दील हो गयी है।
सियासत या दुकानदारी, पहले तय कीजिये
- विचार
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- 29 Mar, 2025
चुनावी मौसम में हर माल बिक जाता है, शर्त एक ही है की आपके पास वादों की पैकिंग आकर्षक हो। सियासत के कारोबार में सिर्फ पैकिंग और पैकेज से ही काम नहीं चलता । इसके लिए माननीय मोदी जी और माननीय राहुल गांधी जैसा सेल्समैन भी चाहिए। राकेश अचल दरअसल, क्या कहना चाहते हैं, पूरा लेख पढ़िए।
