गोवा में आयोजित 55वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल में सोनू निगम ने हिंदुस्तानी फ़िल्म संगीत परंपरा में ‘अमरत्व’ हासिल कर चुके दिवंगत महान गायक मो. रफ़ी साहब को जिस अंदाज़ में श्रद्धांजलि दी वह हैरान करने वाला है। सोनू निगम ने कहा कि “वो नमाज़ी आदमी थे। मुसलमान थे फिर भी भजन गाते थे जैसे कोई हिंदू गा रहा हो। मुझे समझ नहीं आता कि आख़िर वो गायकी में धर्म-परिवर्तन कैसे कर लेते थे?”
मो.रफ़ी के भजनों में ‘धर्मांतरण’ ढूंढते सोनू निगम का ‘कॉमन-सेंस’ देखिए!
- विचार
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- 2 Dec, 2024

फ़िल्म संगीत ही नहीं, आमतौर पर देवताओं को समर्पित भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा भी ‘अल्लाह वालों’ के योगदान से ख़ूब चमकी-दमकी है। यह सिलसिला सल्तनत काल में ही शुरू हो गया था जो मुग़ल और उत्तर मुग़लकाल में आसमान को छूने लगा।
फ़िल्मों में आने से पहले स्टेज पर मो. रफ़ी के सुरों की नक़ल करके पहचान बनाने वाले सोनू निगम ने अपनी समझ से मो. रफ़ी की प्रशंसा ही की थी, लेकिन उनके शब्द बताते हैं कि वे एक बड़ी ‘नासमझी’ के शिकार हो चुके हैं। कुछ समय पहले सुबह की अज़ान से भी तकलीफ़ जता चुके सोनू निगम का बयान दरअसल उस ‘नव-हिंदू का बयान है जिसके 'कॉमन सेंस’ का एक राजनीतिक अभियान ने अपहरण कर लिया है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद इस ‘नव-हिंदू’ की नज़रों पर हिंदू-मुस्लिम बाइनरी का चश्मा उसी तरह चढ़ा दिया गया है जैसे कि ताँगे के घोड़ा की आँख पर चमड़े की पट्टी (हॉर्स ब्लाइंडर्स) चढ़ा दी जाती है ताकि उसकी दृष्टि 180 डिग्री देखने के बजाय महज़ 30 डिग्री तक सीमित हो जाये। वह अगल-बगल कुछ न देखकर सामने के रास्ते को ही देख पाता है। ‘नव हिंदू’ भी ‘हिंदू-मुस्लिम’ के अलावा कुछ देख पाने में असमर्थ है।