देश के अधिकतर हिस्सों में पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। ज़मीन बंजर होती जा रही है। प्रदूषण के कारण साँस लेना दूभर होता जा रहा है। इस पूरे बदलाव से कई प्रजातियाँ ग़ायब हो गई हैं। तो क्या एक दिन हम अपना अस्तित्व भी खो देंगे? कम से कम हाल की कई रिपोर्टों में तो इसके ख़तरे के संकेत मिले हैं। सबसे बड़ा ख़तरा तो यही है कि अनाज का संकट आने वाला है क्योंकि ज़मीन की जिस ऊपरी सतह पर अनाज उपजता है वह बर्बाद होने की कगार पर है। विश्व में कुल अनाज में से 95 प्रतिशत ज़मीन की ऊपरी सतह पर ही उपजते हैं। ज़मीन के बर्बाद होने से जल संकट भी भयावह हो जाएगा। इसका असर यह होगा कि बहुत बड़ी आबादी को विस्थापित होना पड़ेगा।
पर्यावरण दिवस : बंजर होती ज़मीन, गहराता जल संकट और डरावना भविष्य
- विविध
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- 5 Jun, 2019

देश के अधिकतर हिस्सों में पीने के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। ज़मीन बंजर होती जा रही है। प्रदूषण के कारण साँस लेना दूभर होता जा रहा है। इस पूरे बदलाव से कई प्रजातियाँ ग़ायब हो गई हैं। तो क्या एक दिन हम अपना अस्तित्व भी खो देंगे?