छह महीने के राशन-पानी और चलित चौके-चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं, क्या ऐसा मान लिया जाए?
बीस जनवरी, मंगलवार की रात लगभग सवा दस बजे जब भारत के नागरिक सोने की तैयारी कर रहे थे, वाशिंगटन में दिन के पौने बारह बज रहे थे। यही वह क्षण था जिसकी अमेरिका के करोड़ों नागरिक रात भर प्रतीक्षा कर रहे थे।
राजदीप यह भी कहते हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व में अंबानी-अडानी पर हमला काफ़ी पाखंडपूर्ण लगता है और यह भी कि आज देश के दो सबसे अमीर व्यापारिक समूहों को राजनीतिक विवाद से बचने में परेशानी हो रही है।
बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने कैपिटल हिल कांड के बाद डोनल्ड ट्रम्प का ट्विटर अकाउंट बंद किए जाने पर रोष जताया और कहा कि टेक कम्पनी का फ़ैसला लोकतंत्रों के लिए सजग होने का संकेत है। तो बड़ा ख़तरा कौन?
ट्रंप अपनी लड़ाई यह मानते हुए जारी रखना चाहते हैं कि उनकी हार नहीं हुई है बल्कि उनकी जीत पर डाका डाला गया है। मुसीबतों के दौरान ख़ुफ़िया बंकरों में पनाह लेने वाले तानाशाह अपनी पराजय को अंत तक स्वीकार नहीं करते हैं।
किसानों ने जिस लड़ाई की शुरुआत कर दी है वह इसलिए लंबी चल सकती है कि उसने व्यवस्था के प्रति आम आदमी के उस डर को ख़त्म कर दिया है जो पिछले कुछ वर्षों के दौरान दिलों में घर कर गया था।
नए साल का स्वागत हमें ख़ुशियाँ मनाते हुए करना चाहिए या कि पीड़ा भरे अश्रुओं के साथ? किसान आंदोलन से लेकर कोरोना संक्रमण की पीड़ा तक, लोगों की ताज़ा और पुरानी याददाश्त में भी कोई एक साल इतना लम्बा नहीं बीता होगा कि वह ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले!
सिस्टर अभया की हत्या किसी विधर्मी ने नहीं की थी! वे अगर अपनी ही जमात के दो पादरियों और एक सिस्टर को 27 मार्च 1992 की अल सुबह कॉन्वेंट के किचन में आपत्तिजनक स्थिति में देखते हुए पकड़ नहीं ली जातीं तो निश्चित ही आज जीवित होतीं।
सरकार ने अब अपने किसान संगठन भी खड़े कर लिए हैं। मतलब कुछ किसान अब दूसरे किसानों से अलग होंगे! जैसे कि इस समय देश में अलग-अलग नागरिक तैयार किए जा रहे हैं।
देश की तरक़्क़ी के लिए अगर तेज रफ़्तार वाले सुधारों की ज़रूरत है और मौजूदा ‘कुछ ज़्यादा ही’ लोकतंत्र उसमें बाधक बन रहा है तो फिर संसद की नई इमारत बनाने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए।
कांग्रेस के भविष्य को लेकर इस समय सबसे ज़्यादा चिंता व्याप्त है। यह चिंता बीजेपी भी कर रही है और कांग्रेस के भीतर ही नेताओं का एक समूह भी कर रहा है। दोनों ही चिंताएँ ऊपरी तौर पर भिन्न दिखाई देते हुए भी अपने अंतिम उद्देश्य में एक ही हैं।
मुसलिम नेता असदुद्दीन ओवैसी देश में लगातार संगठित और मज़बूत होते हिंदू राष्ट्रवाद के समानांतर अल्पसंख्यक स्वाभिमान और सुरक्षा का तेज़ी से ध्रुवीकरण कर रहे हैं।
बहुत सारे लोगों ने तब राय ज़ाहिर की थी कि सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के 'अपराध' में वकील प्रशांत भूषण को बजाय एक रुपया जुर्माना भरने के तीन महीने का कारावास स्वीकार करना चाहिए था।
नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ इस समय एक ज़बरदस्त माहौल है। नीतीश को देश में ग़ैर-कांग्रेसी और ग़ैर-भाजपाई विपक्ष के किसी संभावित गठबंधन के लिहाज़ से क्या कमज़ोर होते देखना ठीक होगा?
फ़र्ज़ी तरीक़े से अपने चैनल के लिए टीआरपी बटोरने के आरोपों से घिरे अर्णब गोस्वामी की अगुआई वाले रिपब्लिक टीवी ने मुंबई पुलिस के जवानों में ‘विद्रोह’ की स्थिति बनने की ख़बर चलाई थी। ऐसे में क्या कार्रवाई होनी चाहिए?
विवाद का मुद्दा बनाए गए वीडियो विज्ञापन में एक ऐसी गर्भवती हिंदू महिला की ‘गोद भराई’ की रस्म के अत्यंत ही भावपूर्ण दृश्य हैं, जिसका विवाह एक मुसलिम परिवार में हुआ है।
टीवी चैनलों ने विज्ञापनों के ज़रिए धन कमाने के उद्देश्य से ही अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए उस बड़े फ़र्जीवाड़े को अंजाम दिया होगा जिसका कि हाल ही में मुंबई पुलिस ने भांडाफोड़ किया है? यह केवल चैनलों द्वारा अपनी टीआरपी बढ़ाने तक सीमित नहीं है।
लोक नायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) की पुण्यतिथि के तीन दिन बाद यानी ग्यारह अक्टूबर को उनकी जयंती है। सोचा जा सकता है कि वे आज अगर हमारे बीच होते तो क्या कर रहे होते!