रतन टाटा का दाँव उलटा  पड़ गया है। नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल या एनसीएलएटी (एनक्लैट) ने साइरस मिस्त्री को दोबारा टाटा संस का चेयरमैन बनाने का फ़ैसला सुना दिया है। कंपनी विवादों में देश की सबसे ऊँची पंचायत ने यह कहा है कि जिस बोर्ड बैठक में मिस्त्री को हटाने का फ़ैसला हुआ वह बैठक ही ग़ैर-क़ानूनी थी। यही नहीं, उसने टाटा संस के चेयरमैन पद पर एन चंद्रशेखरन की नियुक्ति को भी अवैध क़रार दिया है।
साख की लड़ाई: रतन टाटा को झटका, सायरस मिस्त्री ही टाटा संस के चेयरमैन
- अर्थतंत्र
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 - 18 Dec, 2019

 

टाटा समूह का चेयरमैन बनने के साथ ही साइरस ने अपने पिता के यानी परिवार के क़ारोबार से ख़ुद को पूरी तरह अलग कर लिया था। टाटा संस से निकाले जाने के बाद वह घर के रहे थे न घाट के। और साख को जो बट्टा लगा था वह अलग। तब से अब तक साइरस जो लड़ाई लड़ रहे थे वह कुर्सी वापस पाने से ज़्यादा अपनी साख वापस पाने की लड़ाई थी जिसमें आज वह जीत गए हैं। अब सोचना रतन टाटा को है कि उनकी साख का क्या हुआ, क्या होगा?
एनक्लैट में दो जजों की जिस बेंच ने यह फ़ैसला सुनाया उसके अध्यक्ष न्यायमूर्ति एस. जे. मुखोपाध्याय हैं। उन्होंने टाटा संस को पब्लिक कंपनी से प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदलने का प्रस्ताव भी रद्द कर दिया है।
टाटा संस वह कंपनी है जो टाटा समूह के पूरे क़ारोबार की सबसे बड़ी साझीदार या मालिक है। इसके शेयर ज़्यादातर टाटा समूह से जुड़े ट्रस्टों के पास हैं। लेकिन साइरस मिस्त्री का खानदान इस कंपनी का सबसे बड़ा निजी शेयर होल्डर रहा है। शापुरजी पालनजी मिस्त्री ने वे शेयर ख़रीदे थे जो अब उनके बेटे और पोतों के पास हैं। रतन टाटा के बाद 2012 में कंपनी और टाटा समूह के चेयरमैन बने साइरस मिस्त्री को अक्टूबर 2016 में एक दिन अचानक बोर्ड मीटिंग बुलाकर पद से हटा दिया गया था।

























