अगर मणिपुर की सरकारी बस से ही ‘Manipur’ नाम हटा दिया जाए, किसान को खेत में हल न चलाने दिया जाए, बच्चों की शिक्षा ठप हो जाए, दवाएं समय पर न मिलें, और फिर भी देश का प्रधानमंत्री वहां न पहुंचे— और दिल्ली में भारत मंडपम के मंच से राइजिंग नॉर्थ ईस्ट को एड्रेस करे, तो मणिपुर की जनता पूछेगी ही कि क्या मणिपुर अब भारत की संवैधानिक व्यवस्था के भीतर है या नहीं?

मणिपुर, जहां किसान सदियों से अपनी मिट्टी से जीवन की रचना करते रहे हैं, जहां राज्य की 70 फीसदी अर्थव्यवस्था कृषि पर टिकी है और जहां के किसान पहले से ही गहरे संकट में हैं, वहां के मेहनतकश किसानों को अपने ही खेतों में हल चलाने की इजाज़त नहीं दी जा रही है। इससे राज्य के किसानों में गहरी निराशा और क्षोभ है। बिष्णुपुर जिले के थिनुंगेई क्षेत्र में जब स्थानीय किसान खेत जोतने गए, तो सुरक्षा बलों ने उन्हें रोक दिया। किसानों ने मार्च से ही खेती के लिए अनुमति मांगी थी, पर कोई जवाब नहीं मिला। अंततः जब उन्होंने खुद काम शुरू किया, तो सुरक्षा बलों ने "औपचारिक मंजूरी" न होने का हवाला देकर उन्हें खेतों से हटा दिया।