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दिल्ली में बीजेपी को चाहिए एक अदद चेहरा!

गुजरात में भले ही बीजेपी को रिकॉर्ड तोड़ शानदार जीत मिली हो लेकिन इससे दिल्ली नगर निगम में बीजेपी की हार का मलाल खत्म नहीं हो जाता। गुजरात में भले ही आम आदमी पार्टी बीजेपी के प्रचंड बहुमत के आगे नेस्तनाबूद हो गई और उसके जीते हुए मात्र पांच विधायक नहीं संभल पा रहे लेकिन दिल्ली में अरविंद केजरीवाल ने जो दर्द दिया है, उससे पुराने जख्म फिर से हरे हो गए हैं।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष आदेश गुप्ता को नतीजे आने के बाद एक सप्ताह तक भी बर्दाश्त नहीं किया गया। यहां तक कि उनकी जगह नया अध्यक्ष बनाने का भी इंतजार नहीं किया गया। यह नहीं कहा गया कि आप नया अध्यक्ष बनने तक कार्यभार संभाले रखें बल्कि वीरेंद्र सचदेवा को कार्यवाहक अध्यक्ष बनाकर आदेश गुप्ता को मुक्त कर दिया गया। 

इससे पता चलता है कि बीजेपी को नगर निगम की हार का झटका कितने जोर से लगा है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहा करते हैं कि हर घटना-दुर्घटना को एक नए अवसर के रूप में लेना चाहिए लेकिन सवाल यह है कि क्या बीजेपी दिल्ली नगर निगम में 15 साल की हार जैसी दुर्घटना से कोई सबक लेगी और इसे अवसर के रूप में परिवर्तित करेगी या फिर दिल्ली में एक बार फिर ऐसा प्रयोग किया जाएगा जिससे बाद में यही साबित हो कि बीजेपी ने इस हार से भी कोई सबक नहीं सीखा।
Adesh Gupta resigns after defeat in MCD polls 2022 - Satya Hindi

दिल्ली में बीजेपी ने 1993 में पहला विधानसभा चुनाव जीता था। 1998 में प्याज की महंगाई ने बीजेपी को ऐसा रूलाया कि उसके बाद वह विधानसभा में वापस नहीं लौट पाई। गुजरात में वह सत्ता से अलग नहीं हुई तो दिल्ली में सत्ता हासिल नहीं कर पाई। शीला दीक्षित ने 15 साल बीजेपी को दिल्ली की गद्दी के पास नहीं फटकने दिया तो अब अरविंद केजरीवाल दिल्ली की गद्दी पर ऐसी कुंडली मारकर बैठ गए हैं कि उन्होंने बीजेपी को नगर निगम से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया है। 

आखिर क्यों हो रहा है ऐसा? लोकसभा के चुनाव 2014 में हो या 2019 में-बीजेपी सातों सीटों को बड़े अंतर से जीतती है और पिछले चुनावों में तो आप उम्मीदवारों की जमानतें भी जब्त हो गई थीं। मगर, स्थानीय चुनावों में बीजेपी को सांप सूंघ जाता है। सिर्फ 2017 का नगर निगम चुनाव ही ऐसा चुनाव है जब बीजेपी ने आम आदमी पार्टी पर जीत हासिल की हो, वरना केजरीवाल पर काबू पाना उनके लिए असंभव बन रहा है। 2017 की हार का बदला अब केजरीवाल ने 2022 में ले लिया है और बीजेपी को यह डर सताने लगा है कि कहीं दिल्ली विधानसभा की तरह दिल्ली नगर निगम में भी तो उसका परमानेंट एग्जिट नहीं हो गया। 

Adesh Gupta resigns after defeat in MCD polls 2022 - Satya Hindi
दरअसल, बीजेपी को यह समझने में और मानने में काफी समय लग गया है कि दिल्ली में बीजेपी के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसे वह केजरीवाल के सामने पेश कर सके। दिल्ली के लोगों ने बीजेपी को यह भली-भांति समझा दिया है कि अगर लोकसभा का चुनाव होगा तो हम मोदी जी के नाम पर वोट डालेंगे क्योंकि देश चलाने के लिए मोदी जी की ही जरूरत है लेकिन जब विधानसभा का चुनाव होगा या नगर निगम का चुनाव होगा तो फिर मोदी जी की भी नहीं सुनेंगे। 2013, 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में चुनाव प्रचार किया लेकिन वह बीजेपी को नहीं जिता पाए। 
दिल्ली में अर्बन नक्सलवाद, अनारकिस्ट यानी अराजकवादी का नारा भी लगाया, हिंदू वोटों को बटोरने के लिए ‘देश के गद्दारों को....’ का उद्घोष भी किया और अब नगर निगम चुनावों में भ्रष्टाचार का भी मंत्र पढ़ा गया लेकिन फिर भी दिल्ली की जनता ने केजरीवाल में ही विश्वास व्यक्त किया।
जानते हैं क्यों? इसलिए कि लोकसभा में मोदी जी के चेहरे पर बीजेपी चुनाव जीत जाती है लेकिन दिल्ली विधानसभा और अब दिल्ली नगर निगम में भी जब वह बीजेपी का चेहरा तलाश करती है तो उसे कुछ नजर नहीं आता। दिल्ली में बीजेपी के पास एक ऐसा चेहरा नहीं है जो केजरीवाल के समकक्ष रखा जा सके। 2013 में जब आम आदमी पार्टी ने ईमानदार का ढिंढोरा पीटा और शीला दीक्षित को बदनाम किया, उस वक्त बीजेपी ने भी डॉ. हर्षवर्धन को ईमानदार चेहरे के रूप में पेश किया लेकिन उसके बाद डॉ. हर्षवर्धन कहां हैं?
Adesh Gupta resigns after defeat in MCD polls 2022 - Satya Hindi
उनके ईमानदार चेहरे का बीजेपी ने दिल्ली की राजनीति के लिए इस्तेमाल क्यों नहीं किया? 2015 में डॉ. हर्षवर्धन को मजबूती देने की बजाय बीजेपी किरण बेदी को थैले में से निकाल लाई और वह जितनी जल्दी आई, उतनी ही जल्दी बीजेपी को फिर ऐसे शून्य पर छोड़ गई, जिसे आज तक नहीं भरा जा सका है। 
दिल्ली में प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बीजेपी को कोई वजनदार या दमदार नेता नहीं मिल रहा। यहां तक दो बार तो निगम पार्षदों यानी सतीश उपाध्याय और आदेश गुप्ता को अध्यक्ष बनाने का प्रयोग करना पड़ा है।
यह सच है कि लीडरशिप का विकास जरूरी है लेकिन दिल्ली में केजरीवाल के सामने आखिर आप कितने प्रयोग करेंगे। अब वीरेंद्र सचदेवा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया है और कुछ लोग यह कह रहे हैं कि वह स्थाई अध्यक्ष भी बन सकते हैं। अगर ऐसा हुआ तो फिर बीजेपी के फैसलों पर और सवाल खड़े होंगे क्योंकि केजरीवाल का मुकाबला करने वाला चेहरा वह तो नहीं हो सकते। 
Adesh Gupta resigns after defeat in MCD polls 2022 - Satya Hindi
नगर निगम चुनावों में हार के बाद भले ही आदेश गुप्ता को इसलिए भी हटाया गया हो कि उनका कार्यकाल खत्म हो चुका है लेकिन इस अवसर को भुनाने के लिए बीजेपी के पास एक मौका जरूर है। बीजेपी को अब 2025 के विधानसभा चुनावों के लिए एक चेहरा तो दिल्ली के सामने रखना ही होगा। ऐसा चेहरा जिसे दिल्ली बीजेपी के वर्कर भी जानते-पहचानते हों और दिल्ली की जनता भी उसे अपना नेता मानती हो।विजय कुमार मलहोत्रा, मदन लाल खुराना, केदारनाथ साहनी की परंपरा को आगे बढ़ाने वाला कोई नेता चुनना होगा। बीजेपी अपनी स्थानीय लीडरशिप को विकसित करने के इतने ज्यादा प्रयोग कर चुकी है कि अब प्रयोग का वक्त नहीं है। अगर उसने केजरीवाल के समक्ष पेश किया जाने वाला कोई ताकतवर चेहरा दिल्ली को नहीं दिया तो फिर बीजेपी के लिए दिल्ली इसी तरह दूर ही बनी रहेगी। 
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क़मर वहीद नक़वी
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