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भ्रष्टाचार में लोक सेवक के ख़िलाफ़ अप्रत्यक्ष साक्ष्य भी मान्य: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा है कि किसी लोक सेवक को भ्रष्टाचार के मामले में भ्रष्टाचार के लिए सर्कमस्टैंशियल यानी परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर दोषी ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ऐसा तब किया जा सकता है जब अधिकारी के ख़िलाफ़ कोई प्रत्यक्ष मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य नहीं हो।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार एक महत्वपूर्ण फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत एक लोक सेवक को दोषी ठहराने के लिए रिश्वत की मांग या स्वीकृति का प्रत्यक्ष प्रमाण आवश्यक नहीं है और इस तरह के तथ्य को परिस्थितिजन्य साक्ष्य के माध्यम से साबित किया जा सकता है।

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मृत्यु या अन्य कारणों से शिकायतकर्ता का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध न होने पर भी लोक सेवक को लोक सेवक अधिनियम के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। घूस की माँग या लेने के संबंध में अनुमान क़ानून की अदालत द्वारा केवल तभी लगाया जा सकता है जब मूलभूत तथ्य साबित हो गए हों।

इस मामले में जस्टिस अब्दुल नज़ीर, बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यन और बी.वी. नागरत्ना की 5-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने 23 नवंबर को फ़ैसला सुरक्षित रख लिया था।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने फ़ैसले में कहा, 'आरोपी के अपराध को साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को पहले घूस की मांग और बाद में घूस लेने को तथ्य के रूप में साबित करना होगा। 

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न्यायमूर्ति एसए नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि शिकायतकर्ताओं के साथ-साथ अभियोजन पक्ष को भी ईमानदार प्रयास करना चाहिए ताकि भ्रष्ट लोक सेवकों को सजा दी जा सके और उन्हें दोषी ठहराया जा सके। ऐसा इसलिए कि प्रशासन और शासन भ्रष्टाचार से मुक्त हो सके।

इसके अलावा, फ़ैसले में कहा गया है कि यदि शिकायतकर्ता बयान से पलट जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है या जाँच के दौरान अपने साक्ष्य देने में असमर्थ होता है तो घूस की मांग को किसी अन्य गवाह के रूप में साक्ष्य देकर साबित किया जा सकता है।

 

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क़मर वहीद नक़वी
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