देश की आधी आबादी यानी महिलाओं को जिस बराबरी और समानता के आईने में बाबासाहेब ने देखा, उसका कोई सानी नहीं है। यूँ तो समय-समय पर अलग-अलग महापुरुषों ने महिलाओं के अधिकारों पर ज़ोर दिया लेकिन भारत के मूल दस्तावेज़ों में इन अधिकारों को दर्ज कराने का काम बाबासाहेब ने किया, वह भी कड़े विरोध के बावजूद। इस पर विरोध उस समय की मानसिकता को दर्शाता है जिसने हमेशा महिलाओं को दोयम दर्जे का स्थान दिया है। जिनके लिए महिला उनकी सम्पत्ति से अधिक कुछ नहीं।
महिला आज़ादी के बड़े पैरोकार थे बाबासाहेब आम्बेडकर
- विचार
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- 14 Apr, 2020

बाबासाहेब आम्बेडकर महिलाओं की आज़ादी के पैरोकार थे। उन्होंने महिला सशक्तिकरण को नई राह दी। उन्हीं के देश में कभी हैदराबाद तो कभी उन्नाव या कहीं और महिलाओं के बलात्कार व हत्याओं के मामले सामने आ रहे हैं। आम्बेडकर ने क्या ऐसे भारत की कल्पना की होगी...
‘रात और दिन, कभी भी स्त्री को स्वतंत्र नहीं होने देना चाहिए। उन्हें लैंगिक संबंधों द्वारा अपने वश में रखना चाहिए, बालपन में पिता, युवावस्था में पति और बुढ़ापे में पुत्र उसकी रक्षा करें, स्त्री स्वतंत्र होने के लायक नहीं है।’ मनु स्मृति (अध्याय 9, 2-3) में लिखी यह बात बताती है कि उस वक़्त महिलाओं की क्या दशा रही होगी। हमारा समाज सदियों से मनुवादी संस्कृति से ग्रसित रहा है। मनुस्मृति काल में नारियों के अपमान और उनके साथ अन्याय की यह पराकाष्ठा थी।