देश की आधी आबादी यानी महिलाओं को जिस बराबरी और समानता के आईने में बाबासाहेब ने देखा, उसका कोई सानी नहीं है। यूँ तो समय-समय पर अलग-अलग महापुरुषों ने महिलाओं के अधिकारों पर ज़ोर दिया लेकिन भारत के मूल दस्तावेज़ों में इन अधिकारों को दर्ज कराने का काम बाबासाहेब ने किया, वह भी कड़े विरोध के बावजूद। इस पर विरोध उस समय की मानसिकता को दर्शाता है जिसने हमेशा महिलाओं को दोयम दर्जे का स्थान दिया है। जिनके लिए महिला उनकी सम्पत्ति से अधिक कुछ नहीं।