loader

महामारी से निपटने के झोलाछाप तरीके बढ़ा रहे हैं संकट!

भारत में नौकरशाही तो राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बहुत पहले से बनती रही है। आर्थिक, वैदेशिक और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ और सलाहकार भी सरकार के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व की भाव-भंगिमा के अनुरूप सलाह देते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी के दौर में यह पहली बार देखने को मिल रहा है शीर्ष पदों पर बैठे डॉक्टर और वैज्ञानिक भी पूरी तरह राजनीतिक सिस्टम का हिस्सा बन चुके हैं। 

वे भी सरकार की शहनाई पर तबले की संगत दे रहे हैं, यानी वही सब कुछ बोल रहे हैं जैसा सरकार चाहती है। समझ में ही नहीं आ रहा है कि देश में कोरोना महामारी से उपजे संकट का प्रबंधन कौन संभाल रहा है? 

ताज़ा ख़बरें

हर दिन नए दिशा-निर्देश 

महामारी प्रबंधन का काम औपचारिक रूप से चिकित्सा क्षेत्र के कुछ विशेषज्ञों के हाथ में है। इस नाते नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर वीके पॉल, भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव, भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार डॉक्टर के. विजय राघवन, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स दिल्ली के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया आदि के चेहरे भी टेलीविजन पर दिखते रहते हैं। मगर ये तमाम विशेषज्ञ कोरोना के इलाज को लेकर आए दिन बदल-बदल कर दिशा-निर्देश जारी कर रहे हैं। 

जिस तरह गांवों में झोलाछाप डॉक्टरों को समझ में नहीं आ रहा है कि कोरोना का इलाज कैसे किया जाए, वैसे ही भारत सरकार के इन विशेषज्ञों को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

कोरोना के इलाज में प्रयुक्त होने वाली दवाइयों से लेकर कोरोना की वैक्सीन के दो डोज लगवाने में समय के अंतराल तक को लेकर ये विशेषज्ञ सरकार की सुविधा के मुताबिक रोज नए-नए दिशा-निर्देश जारी कर रहे हैं।

प्लाज्मा थेरेपी बाहर क्यों?

दुनिया में कोरोना वायरस की महामारी शुरू हुए डेढ़ वर्ष हो चुका है और भारत में भी इस महामारी के करीब 16 महीने में इस समय संक्रमण की दूसरी लहर चल रही है, जो पहली लहर से कहीं ज्यादा मारक है। पहली लहर में प्लाज्मा थेरेपी से भी कोरोना से संक्रमित लोगों का इलाज किया जा रहा था जिसके नतीजे भी अच्छे आए थे। दूसरी लहर में भी इस थेरेपी से कई मरीजों को फायदा हुआ लेकिन अब अचानक इस थेरेपी को इलाज के प्रोटोकॉल से बाहर कर दिया गया है। 

यह सोचने और हैरान करने वाली बात है कि इतने दिनों से प्लाज्मा थेरेपी चल रही थी, लोग प्लाज्मा डोनेट कर रहे थे, प्लाज्मा बैंक बन रहा था, इस थेरेपी के सकारात्मक नतीजे भी मिल रहे थे, लेकिन अब इससे इलाज पर रोक लगा दी गई है। इस फैसले से दो दिन पहले ही आइवरमेक्टिन नाम की दवा को भी प्रोटोकॉल से बाहर किया गया, जबकि यह दवा भी देश में करोड़ों लोग खा चुके हैं।

रामदेव को लेकर देखिए चर्चा- 

अजब हाल है!

पिछले साल कोरोना की पहली लहर के दौरान हाईड्रोक्सिक्लोरोक्विन नामक दवा को कोरोना के उपचार में बेहद कारगर करार दिया गया था। आईसीएमआर ने ही इस दवा की सिफारिश की थी। अमेरिका सहित दुनिया के कई देशों में भी इसकी खूब मांग हुई और भारत से इसका निर्यात भी हुआ। लेकिन थोड़े ही समय बाद अज्ञात कारणों से इस दवा को भी कोरोना प्रोटोकॉल से बाहर कर दिया गया। बस इतना कहा गया कि यह दवा प्रभावी नहीं है। 

इसी तरह हाल ही में जब देश में ब्लैक फंगस के मामले अचानक बढ़ने लगे हैं तो तमाम विशेषज्ञों ने कहना शुरू कर दिया है कि स्टेरॉयड के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से ऐसा हो रहा है। जबकि कोरोना की पहली लहर में ये ही विशेषज्ञ स्टेरॉयड थैरेपी को वरदान बताते नहीं थक रहे थे।

सवाल है कि क्या उन्हें पहली लहर के दौरान ही पता नहीं लग गया था कि स्टेरॉयड के ज्यादा इस्तेमाल से जानलेवा ब्लैक फंगस फैल रहा है या फैल सकता है? क्यों नहीं पहले ही उसके इस्तेमाल को नियंत्रित नहीं किया गया या उस पर रोक लगाई गई?

ब्लैक फंगस के पीछे वजह?

अब यही तमाम विशेषज्ञ महामारी शुरू होने के डेढ़ साल बाद रेमडेसिविर, टोसिलिजुमैब, फेविपिराविर आदि दवाओं को अनुपयोगी या हानिकारक बता कर नए निर्देश जारी कर रहे हैं, जबकि अब इन दवाओं पर लोग करोड़ों-अरबों रुपये बर्बाद कर चुके हैं। यह भी कहा जा रहा है वायरस की दूसरी लहर शुरू होने और ऑक्सीजन के लिए हाहाकार मचने के बाद बहुत खराब क्वालिटी के ऑक्सीजन सिलेंडरों की आपूर्ति हुई और उसी की वजह से ज्यादातर लोगों में ब्लैक फंगस की बीमारी हुई है।

इन विशेषज्ञों के अलावा सरकार के कुछ अघोषित स्वास्थ्य सलाहकार भी हैं। ऐसे सलाहकारों में योग प्रचारक और कारोबारी बाबा रामदेव सबसे प्रमुख हैं। उन्होंने तो इन सारे झोलाछाप विशेषज्ञों से कई कदम आगे जाकर मेडिकल साइंस को ही बेवकूफ करार दे दिया।

रामदेव की आलोचना

बढ़ते कोरोना संक्रमण और उससे बड़े पैमाने पर हो रही मौतों के बीच रामदेव ने कहा कि ज्यादातर लोगों की मौत ऐलोपैथिक दवाओं के इस्तेमाल से हुई है। रामदेव का यह बयान बेहद संगीन और आपराधिक है, क्योंकि इससे उन लाखों लोगों की जान को खतरा हो सकता है जो उन्हें आयुर्वेद का प्रामाणिक जानकार मानते हुए उन पर भरोसा करते हैं। केंद्र सरकार की ओर से बिना कोई देर किए इस बयान के लिए रामदेव पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। 

controversy on Ramdev allopathy statement - Satya Hindi

आईएमए का सख़्त स्टैंड 

हालांकि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन आईएमए ने रामदेव के बयान पर कड़ा ऐतराज जताया और सरकार से रामदेव के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। सोशल मीडिया में भी रामदेव की काफी लानत-मलामत हुई, जिसके चलते केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने बेहद विनम्र भाषा में रामदेव को एक पत्र लिखा। 

पत्र में उन्होंने रामदेव से मेडिकल साइंस और ऐलोपैथिक दवाओं के खिलाफ दिए गए उनके बयान को वापस लेने का अनुरोध किया, जिस पर रामदेव ने अगर-मगर लगाते हुए अपने बयान के लिए खेद जताने की खानापूर्ति कर दी। 

कोरोनिल का प्रचार 

यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आयुर्वेदिक दवाएं बनाने वाली रामदेव की कंपनी पंतजलि आयुर्वेद लिमिटेड को भी सरकार का वरदहस्त हासिल है। पिछले साल रामदेव की इस कंपनी ने कोरोनिल नामक दवा भी बनाई थी। रामदेव ने 23 जून 2020 को यह दवा लॉन्च करते हुए कोविड-19 के इलाज में इसके शत-प्रतिशत कारगर होने और इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन डब्ल्यूएचओ की मान्यता मिलने का दावा किया था, जिस पर स्वास्थ्य मंत्री चुप्पी साधे रहे थे। 

बाद में जब कुछ जाने-माने स्वतंत्र विशेषज्ञों ने रामदेव के दावों पर सवाल उठाए और वैकल्पिक मीडिया में भी रामदेव के दावे की आलोचना हुई। डब्ल्यूएचओ ने भी दावे का खंडन कर दिया और साफ कहा कि किसी भी दवा को मान्यता देने का काम वह नहीं करता है।

पलट गए रामदेव 

ऐसे में केंद्र सरकार के आयुष मंत्रालय ने मजबूरन कोरोनिल के विज्ञापनों पर रोक लगाते हुए कंपनी से इस दवा के रिसर्च और क्लीनिकल ट्रायल आदि का ब्यौरा देने को कहा था। इस पर पतंजलि आयुर्वेद की ओर से रामदेव और उनके सहयोगी बालकृष्ण ने सफाई दी थी कि कोरोनिल कोरोना संक्रमण रोकने में एक सहायक दवा है और कंपनी की ओर से कभी नहीं कहा गया था कि कोरोनिल से कोरोना वायरस का इलाज हो सकता है। 

controversy on Ramdev allopathy statement - Satya Hindi

कोरोना रोधी काढ़ा 

अपनी दवा पर फौरी तौर पर कदम पीछे खींचने के बाद रामदेव अपनी कंपनी का बनाया कथित कोरोना रोधी काढ़ा बेचने में जुट गए। पिछले फरवरी महीने में जब देश-विदेश के तमाम विशेषज्ञ कोरोना की दूसरी लहर आने की चेतावनी देने लगे तो रामदेव कोरोनिल को लेकर फिर सक्रिय हो गए। इस बार वे भारत सरकार को पूरी तरह साध लेने के बाद ही मैदान में उतरे। 

फिर लाए कोरोनिल को 

19 फरवरी को रामदेव ने समारोहपूर्वक एलान किया कि कोरोनिल के लिए आयुष मंत्रालय की हरी झंडी मिल गई है। इस समारोह में इस दवा को प्रमोट करने के लिए ऐलोपैथी चिकित्सा से जुड़े देश के डॉक्टर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन और परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी मौजूद रहे। इस दवा को दोबारा लॉन्च करते हुए रामदेव ने कहा कि डब्ल्यूएचओ की प्रमाणन योजना के तहत कोरोनिल टेबलेट को आयुष मंत्रालय की ओर से कोविड-19के उपचार में सहायक औषधि के तौर पर प्रमाण पत्र मिला है। लेकिन जब यह ख़बर मीडिया के जरिए प्रसारित हुई तो इसका स्वरूप बदला हुआ था। ​

रामदेव की कंपनी के विज्ञापनों से उपकृत कई टीवी चैनलों ने रामदेव का साक्षात्कार लेते हुए दावा किया कि पतंजलि की दवा कोरोनिल को डब्ल्यूएचओ ने प्रमाणित कर दिया है। इनमें से कुछ टीवी चैनलों के संपादकों और एंकर्स ने तो इस बारे में खबर देते हुए रामदेव को बधाई भी दे दी।

डॉक्टर जमील ने छोड़ा साथ 

सरकार की इसी झोलाछाप मानसिकता और महामारी को लेकर बेहद अगंभीर रवैये से क्षुब्ध होकर ही पिछले दिनों वरिष्ठ वायरोलॉजिस्ट डॉक्टर शाहिद जमील ने सरकार का साथ छोड़ दिया। वे कोरोना वायरस के विभिन्न वैरिएंट का पता लगाने के लिए बने वैज्ञानिक सलाहकारों के सरकारी फोरम इंडियन सार्स-सीओवी-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम के अध्यक्ष थे। हालांकि उन्होंने साफ तौर पर अपने इस्तीफे की वजह नहीं बताई लेकिन इतना जरूर कहा कि विभिन्न प्राधिकरण उस तरह से साक्ष्यों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने अपनी नीति तय की हुई है।

सरकार को चेताया था

डॉक्टर शाहिद जमील का इस्तीफा देना कोई सामान्य घटना नहीं है। उन्होंने ही मार्च महीने की शुरुआत में सरकार को देश में कोरोना वायरस के एक नए और अधिक संक्रामक वैरिएंट के बारे में चेतावनी दी थी। वे इस बात पर लगातार चिंता जता रहे थे कि सरकार उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए सबूतों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रही है। 

controversy on Ramdev allopathy statement - Satya Hindi

डॉक्टर शाहिद जमील ने 'न्यूयॉर्क टाइम्स’ में एक लेख लिख कर कोरोना टेस्ट कम कराने और साक्ष्यों के आधार पर नीति नहीं बनाने के लिए भारत सरकार की आलोचना की थी। 

इस लेख में उन्होंने कहा था, ''भारत में पहले फ़ैसले लिए गए और उसके बाद उसके हिसाब से आंकड़े जुटाए गए। मैं सरकार को सलाह दे सकता हूँ, पर नीतियां बनाना तो सरकार का ही काम है।....संक्रमण रोकने के लिए जब मैंने कड़े प्रतिबंध लगाने की सिफारिश की तो सरकार के शीर्ष नेतृत्व ने ठीक उल्टा करते हुए बड़ी-बड़ी राजनीतिक रैलियां आयोजित की और कुम्भ मेले का आयोजन करवाया।’’ 

विचार से और ख़बरें

सुस्त टीकाकरण 

डॉ. जमील ने अपने लेख में कहा था कि भारत सरकार को देश के वैज्ञानिकों की बात सुननी चाहिए और महामारी से निबटने के लिए नीतियां बनाने में जिद्दी रवैया छोड़ना चाहिए। उन्होंने भारत में कोरोना के टीकाकरण की नीति की भी आलोचना करते हुए लिखा था कि शुरुआत में तो टीकाकरण ठीक चल रहा था लेकिन मार्च के मध्य में सिर्फ 1.5 करोड़ खुराक ही डिलीवर हुई, जिससे सिर्फ एक फीसद जनसंख्या का ही टीकाकरण किया जा सकता था। 

टीकाकरण की गति भारतीय नेतृत्व के उस संदेश से लड़खड़ा गई, जिसमें कहा गया था कि भारत ने कोरोना पर विजय पा ली है।

कुल मिलाकर इतना सब होने के बाद भी न तो सरकार अपना रवैया बदलती दिखाई दे रही है और न ही सरकार के विशेषज्ञ सलाहकार। सबने मिलकर भारत की 130 करोड़ जनता को गिनिपिग समझ लिया है और उसी समझ के मुताबिक झोलाछाप प्रयोग का सिलसिला जारी रखे हुए हैं।

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
अनिल जैन
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

विचार से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें