हम जो कुछ भी इस समय अपने ईर्द-गिर्द घटता हुआ देख रहे हैं उसमें नया बहुत कम है, शासकों के अलावा। केवल सरकारें ही बदलती जा रही हैं, बाक़ी सब कुछ लगभग वैसा ही है जो पहले किसी समय था। लोगों की तकलीफ़ें, उनके दर्द और इस सबके प्रति एक बेहद ही क्रूर उदासीनता केवल इसी ज़माने की कोई नयी चीज़ नहीं है। फ़र्क़ केवल इतना है कि हरेक ऐसे संकट के बाद व्यवस्थाओं के कपड़े और ज़्यादा फटे हुए नज़र आने लगते हैं। कहीं भी बदलता बहुत कुछ नहीं है।
मज़दूरों को नंगे पैर चलते देख सरकारें क्यों हिल गईं?
- विचार
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- 5 May, 2020

कर्नाटक, तेलंगाना और हरियाणा के मुख्यमंत्री अगर प्रवासी मज़दूरों को रुकने के लिए कह रहे हैं तो वह उनके प्रति किसी ख़ास प्रेम के चलते नहीं बल्कि इसलिए है कि इन लोगों के बिना उनके प्रदेशों की आर्थिक सम्पन्नता का सुहाग ख़तरे में पड़ने वाला है। राज्यों में फ़सलें खेतों में तैयार खड़ी हैं और उन्हें काटनेवाला मज़दूर भूखे पेट सड़कें नाप रहा है। अब इनके रेल भाड़े को लेकर ज़ुबानी दंगल चल रहे हैं।