आंदोलनकारी किसानों ने आखिरकार केंद्र सरकार का प्रस्ताव ठुकरा कर आंदोलन को और तेज करने का फैसला किया है। इसके बाद बातचीत के दरवाजे बंद हो गए हैं। अब एक बात साफ हो गई है कि यह आंदोलन कुछ दलों के हाथों की कठपुतली बन गया है, क्योंकि लक्ष्य किसानों की भलाई नहीं, बल्कि राजनीतिक स्वार्थ है।