देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन का अब किसानों से कोई ताल्लुक नहीं रह गया है। क्योंकि कोई भी आंदोलन किसी समस्या का समाधान खोजने के लिए होता है। समाधान का रास्ता संवाद से निकलता है। आंदोलनकारी न तो समाधान चाहते हैं और न ही संवाद। यह एक प्रयोग हो रहा है जो सफल हो गया तो भारत में जनतंत्र को कमज़ोर करने का साधन बनेगा।
संसद में बने कृषि क़ानून क्या सड़क पर रद्द किए जाएँगे?
- विचार
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- 27 Dec, 2020

देश की राजधानी दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन को क्या जारी रहना चाहिए? क्या संसद में बने क़ानून को सड़क पर रद्द किया जाएगा? यह आंदोलन केंद्र सरकार के तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि भारत में संवैधानिक जनतंत्र के ख़िलाफ़ है। किसान तो बहाना हैं। यह आंदोलन भारतीय राष्ट्र राज्य को कमज़ोर करने की दिशा में बढ़ गया है।
यह आंदोलन इस बात की मुनादी है कि अब इस देश में क़ानून संसद में भले बन जाएँ लेकिन उन्हें सड़क पर रद्द किया जाएगा। इस आंदोलन के समर्थक आग से खेल रहे हैं। जो राजनीतिक दल साथ हैं वे उसी हाथ (जनतंत्र और संविधान का राज) को काटना चाहते हैं जो उन्हें खिला (राजनीतिक अवसर) रहा है।
प्रदीप सिंह देश के जाने माने पत्रकार हैं। राजनीतिक रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है। आरएसएस और बीजेपी पर काफी बारीक समझ रखते हैं।