तालाबंदी में सरकार ने ढील दे दी है और अधर में अटके हुए मज़दूरों और छात्रों की घर-वापसी के लिए रेलें चला दी हैं, इससे लोगों को काफ़ी राहत मिलेगी लेकिन इसके साथ जुड़ी दो समस्याओं पर सरकार को अभी से रणनीति बनानी होगी। एक तो जो मज़दूर अपने गाँव पहुँचे हैं, उनमें से बहुत-से लौटना बिल्कुल भी नहीं चाहते। आज ऐसे दर्जनों मज़दूरों के बारे में अख़बार रंगे हुए हैं। उनका कहना है कि 5-6 हजार रुपये महीने के लिए अब हम अपने परिवार से बिछुड़कर नहीं रह सकते। गाँव में रहेंगे, चाहे कम कमाएँगे लेकिन मस्त रहेंगे।
अब फ़ौज से फूल क्यों बरसवाए जा रहे हैं, क्या नौटंकी है?
- विचार
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- 3 May, 2020

नकलचीपन बड़े स्तरों पर भी हो रहा है। देश कोरोना के संकट में फँसा है और आप लोगों से थालियाँ और तालियाँ बजवा रहे हैं। एक तरफ़ राहत कार्यों के लिए आप लोगों से दान माँग रहे हैं और दूसरी तरफ़ फ़ौजी नौटंकियाँ में करोड़ों रुपये बर्बाद करने पर उतारू हैं। मैंने सोचा कि सरकार शायद कोरोना-युद्ध में हमारी फ़ौज को भी सक्रिय करने की बड़ी घोषणा करेगी लेकिन खोदा पहाड़ तो निकली चुहिया।