बहुत पीछे लौटने की बिल्कुल ज़रूरत नहीं है। 20 से 25 साल पीछे लौट जाइये। बिहार में लड़कियों का साइकिल चलाना अटपटा मालूम पड़ता था। गाँव की लड़कियों की तो छोड़ ही दीजिए, छोटे-छोटे शहरों में भी इसका चलन नाम मात्र ही था। स्कूल में लड़कियों की संख्या भी बहुत कम थी।
बिहार में कभी ज्योति जैसी लड़कियों का साइकिल चलाना चरित्रहीन होना था
- विचार
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- 26 May, 2020

कुछ समय पहले तक बिहार में किसी ग़रीब परिवार की किसी लड़की ने साइकिल चलाने की हिमाकत कर ली तो सामने ही चरित्रहीनता का प्रमाणपत्र दे देना भी नॉर्मल यानी सामान्य था। कैसे आया बदलाव?
बिहार में लड़कियों की स्थिति के अध्ययन के लिए इसे कई सेग्मेंट्स में बाँट कर देखना होगा। सभी लड़कियाँ समान रूप से सभी चीजों को एन्जॉय नहीं कर रहीं। एक तो वे हैं जो सवर्ण परिवारों से आती हैं जहाँ के परिवार शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से उन्नत हैं। उसी वर्ग में लड़कियों का दूसरा सेगमेंट है जिनका परिवार आर्थिक रूप से कमज़ोर है।
अब मँझोली जातियों में आइए जिसमें यादव, तेली, सूरी, कोइरी, कुर्मी और अन्य कई जातियाँ हैं। इसमें भी 2 सेग्मेंट्स हैं। एक वह जिनका परिवार थोड़ा खाता-पीता परिवार है जिसके घरों में छोटी-मोटी सरकारी नौकरियाँ हैं या ज़मीन-जायदाद अच्छी खासी है। जबकि दूसरा सेग्मेंट वह है जो गाँवों में ही छोटी मोटी चाय दुकान, किराना दुकान या मज़दूरी कर अपने परिवार का पालन पोषण करता है।